Mushroom
मशरूम के फायदे

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    भंडारा. ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों महिलाओं के लिए वे छोटे-मोटे काम बहुत बड़ी राहत लेकर आए है, जिनकी ओर से कोरोना काल से पहले जरा भी महत्व नहीं दिया जाता था. 

    वर्षाकाल आते ही गरम वस्तुएं खाने की इच्छा होती है. इस मौसम में शहरी क्षेत्रों में पकौड़े खाना ज्यादा पसंद किया जाता है, जबकि ग्रमीण क्षेत्रों में बहुत कुछ ऐसा होता है, जो वर्षाकाल में बहुत ही चाव के साथ खाया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं जंगल में जाकर मशरुम एकत्र करती हैं और शहर में जाकर विभिन्न भागों में उसकी बिक्री करती हैं. भंडारा शहर में वर्तमान में छिगरी, अलंबी, छत्रीय, भूछत्र, टेकाड़े इन अलग-अलग नामों से मशरूम बिक रहे हैं. भंडारा शहर में इनको लोग मशरूम के नाम से सात्या के नाम से ज्यादा जानते हैं.

    ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए मानसून का काल बहुत बड़ी राहत बनकर आता है. वनक्षेत्र, गांव के पास स्थित झुडपी जंगल में तड़के ही ये महिलाएं जाकर मशरूम एकत्र करती हैं और अपने घर लौटकर उसे अच्छी तरह से धोकर उनका बंडल तैयार करती है. मशरुम की तरह रानमेवा की भी मानसून काल में मांग बढ़ जाती है. इसे खाने के शैकीन बढ़ी ही बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं. गांव-गांव में इन दिनों महिलाओं में इसी बात को लेकर होड़ मची है कि कौन ज्यादा से ज्यादा मशरूम जमा करती है, 

    अपुष्णी वनस्पति के प्रवर्ग में आने के कारण इसमें रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाने का काम करती हैं. मधुमेह, रक्तदाब, ह्दय रोग के मरीजों के लिए मशरुम बहुत ही अच्छा माना जाता है. साकोली की वनसंशोधन संस्था के सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. पी.बी. मेश्राम का कहना है कि मशरूम अर्थात् सात्या टर्मिटोमासिस प्रजाति की वनस्पति है, इसका अन्न के रूप में उपयोग किया जाता है. महाराष्ट्र में मशरुम की 10 प्रजातियां हैं. गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से सबल बनाने के साथ-साथ सेहत के लिए ये मशरूम राणबाण खाद्य सामग्री है.