दहशत और पैसों का लालच : खेतों में फसल की बजाए रेत के ढेर

  • संगठित रेत तस्करी का नंगा सच

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विजय खंडेरा

भंडारा. सदाप्रवाही, जीवनदायनी वैनगंगा ने अपने दोनों किनारों बसे गावों को समृद्ध किया है. वैनगंगा पानी ने प्यास के साथ ही भोजन के लिए अनाज की जरूरत को भी पूरा किया है. वैनगंगा के किनारे पर लहलहाती फसल से सजी हरे भरे खेतों का गालिचा प्रकृति की सुंदरता को चांद लगाता था. लेकिन वक्त की महिमा देखीए कि इजी मनी के चक्कर में इन खेतों में फसल की बजाए रेत के ढेर लगे हुए है. इजी मनी के साथ ही तस्करों का दहशत है कि खेत मालिक को “खुशी खुशी” या फिर “मजबूरन” अपने खेत को तस्करों के हाथों सौंपने के सीवा कोई चारा नहीं रहा है. यह सच प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि भी जानते है, गांव के सरपंच से लेकर उंचे ओहदे पर बैठे अधिकारी एवं नेता भी सच्चाई से वाक़िफ़ है. लेकिन संगठित रेत तस्करी के आगे मुंह खोलने की कोई हिम्मत नहीं करता.

वैनगंगा के किनारे पर बसे किसी भी गांव में चले जाइए. नदी किनारे के खेतों में रेत के ढेर दिखाई देंगे. कारवाई के नाम पर यदाकदा रेत के ढेरों की जप्ती भी दिखाई देती है. लेकिन अधिकतर कारवाई कागज़ी ही होती है.

मोहाडी तहसील में बेटाला, रोहा, बोथली पांजरा, मोहगाव देवी, रोहना, ढिवरवाडा तुमसर तहसील में सुकली बाम्हनी, चारगाव, माडगी, भंडारा तहसील में कोर्थुना, खमाटा, टाकली, लावेश्वर, दाभा, इंदूरखा, दाभा, कारधा, करचखेडा, खमारी, मंडनगाव आदि केवल गिने चुने ही नाम है, फसल की जगह रेत के ढेर की चित्र पूरे जिले में नदी किनारे के हर गाव में देखा जा सकता है.

क्या करें, शिकायत करते है : राजेश लेंडे

राजेश लेंडे यह मोहगाव देवी के ग्रापं सदस्य है. पत्नी सत्यफुला लेंडे यह गांव की सरपंच है. राजेश लेंडे ने बताया कि “खेत में रेत के ढेर यह सच्चाई है. लेकिन इस मामले में किसी की शिकायत नहीं होती. अधिकतर मामले में खेतमालिक की रजामंदी होती है.” अवैध रेत से सरकारी राजस्व के नुकसान के सवाल पर राजेश ने बताया कि ” राजस्व का नुकसान तो होता है. ग्रांप द्वारा समय समय पर तहसीलदार को सूचित किया जाता है. कारवाई का अधिकार तहसीलदार को होता है. पिछले समय में 4 बार कारवाई भी हुई है.”

किराए पर खेत

एक किसान ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि “रेत तस्करों को खेत देना मजबूरी और लालच भी है. क्योंकि तस्करों का विरोध करना किसानों के बस की बात नहीं है. रेत रखने के बदले हर महीना किराया भी मिलता है.” जब खेत में फसल में आमदानी मनमुताबित नहीं हो रही है. ऐसे में अगर बगैर किसी मेहनत और निवेश से पैसा मिल रहा हो. किसान के सामने कोई विकल्प नहीं रहता, उसे तस्करों को अपना खेत सौंपना ही पडता है.

शो पीस है कारवाई : उमेश मोहतुरे

ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे भाजयुमो पूर्व जिलासचिव उमेश मोहतुरे ने बताया कि “संगठित रेत तस्करी के आगे ग्रामीण टिक पाना संभव नहीं है. रेत तस्करी रोकने के लिए बनाई गयी चौकियां शोपीस है. मिसाल के तौर पर दाभा मोड पर बनी चौकी में राजस्व विभाग का कर्मी नहीं रहता, फिर कारवाई कौन करेगा?” “गांव स्तर के जनप्रतिनिधि, अधिकारी,कर्मचारी से लेकर उपरी स्तर की मिली भगत के बगैर रेत तस्करी संभव नहीं है. इन सभी के आंखों सामने रेत उत्खनन, डंपींग से लेकर ढुलाई होती है.”

गांव का नुकसान

अगर रेत घाट नीलामी होता है, सरकार को राजस्व मिलता है, साथ ही नीलामी राशि का 5 प्रतिशत ग्राम पंचायत को मिलता है. याने फिलहाल इन सभी गांवों की सुनिश्चित राजस्व का नुकसान हो रहा है. रेत तस्करी की वजह से सरकार एवं ग्रापं दोंनो को राजस्व से हाथ धोना पड रहा है. लेकिन व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जिन्हे चौकिदार की भूमिका निर्वाह करनी है, वे खर्राटेभरी नींद में है. स्वाभाविक है कि सामान्य किसान रेत तस्करी के खिलाफ बोलने की बजाए अपने चुप रहने की कीमत के तौर पर खेत में फसल न सही रेत रखने के लिए मिल रहे किराए में अपना घर चला रहा है.