Health workers should be regularized in the service, Vic President Patole gave instructions
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  • विरोधी हो रह है लामबंद

भंडारा. विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद नाना पटोले की वजह से साकोली, लाखनी लाखांदुर क्षेत्र विशेष चर्चा में रहता है. नाना जब कभी अपने गाव पहुंचते है. पश्चिम महाराष्ट्र एवं दूसरे स्थानों से नाना से मिलने के लिए लोग सुकली पहुंचते है. यह अतिथि सबसे ज्यादा रोचक होता है, नाना के सुबह तडके से मिलने आए लोगों के हुजूम को देखना. लोगों का प्यार देखकर यह आगंतुक हतप्रभ रह जाते है.

यही हाल मुंबई से आए मीडियाकर्मियों का होता है. नाना की लोगों में बैठक बरकरार है. लेकिन आनेवाले जिप, पंस चुनाव में नाना के बादशाहत की असली परीक्षा है. विरोधी हरसंभव कोशिश कर रहे है कि नाना को गृहक्षेत्र में शिकस्त देकर उनके कद को तोडा जाए.

यह सच है कि नाना पटोले की लाखांदुर साकोली तहसील में लोकप्रियता को वोटों की गिनती से नहीं आंका जा सकता. उल्टे जब नाना को राजनीति में शिकस्त मिली है. नाना के घर में लोगों की भीड उतनी की बढी है. विधानसभा में धान की जुडी जलाने, भंडारा में विराट मोर्चा निकालने जैसे उपक्रमों से नाना ने लोगों में पैठ बनायी. जो अब तक बरकरार है.

अब आगे क्या होगा?

लेकिन जैसे ही जिला परिषद, पंचायत समिति और नगर पंचायत का आरक्षण दिया गया, साकोली और लाखांदुर तहसील में राजनीतिक चर्चा गति पकड़ती दिख रही है कि अब आगे क्या होगा?

अतीत में, नाना के नेतृत्व में कांग्रेस जिप एवं पंस चुनाव में हावी होने में सक्षम थी. हालांकि, लाखांदुर नगर पंचायत चुनाव भाजपा ने बाजी मारी. भाजपा ने जिप पंस चुनाव को लेकर पूरा ध्यान केंद्रित किया है. रणनीति बनायी है कि नाना पटोले को उनकी जन्मभूमि कर्मभूमि में ही पटकनी दी जाए.

अपनों को साधने की चुनौती

जहां तक लाखनी, साकोली एवं लाखांदुर तहसील की बात है. पांच साल पहले जून जुलाई 2015 में जिप पंस चुनाव हुए थे. तब नाना पटोले भाजपा में थे. लेकिन 2015 के जिप पंस चुनाव में सेवक वाघाये ने कांग्रेस का किला संभाल कर रखा था. दिसंबर 2017 में कांग्रेस पुर्नप्रवेश किया. स्वाभाविक 2015 की चुनावी रणनीति इस बार कम नहीं करेगी. सेवक वाघाये एवं नाना पटोले के बीच की संबंधों की प्रगाढता सर्वश्रृत है. सेवक वाघाये की भूमिका पर सभी की नजर है. शेष कांग्रेसियों को लामबंदी करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. कुल मिलाकर नाना के साथ जन समुदाय तो नजर आता है. लेकिन कांग्रेसियों घेरा गायब रहता है. जो चिंता की बात हो सकती है.

वहीं राकां की भूमिका पर भी सभी की नजर है. नाना पटोले की रणनीति है कि सभी साध में रहें. राकां कांग्रेस की संयुक्त रणनीति से शानदार प्रदर्शन किया जा सकता है. अगर नाना पटोले कांग्रेसी एवं राकां को साध में कर पाते है तभी जाकर नाना पटोले की बादशाहत टीकी रह सकती है. मामला केवल लाखांदुर, लाखनी और साकोली तहसील क्षेत्र का नहीं है. बल्कि दूसरे शब्दों में चुनाव में प्रदर्शन को विधायक नाना पटोले से ज्यादा विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले के तौर पर चुनावी सफलता – असफलता के तौर पर देखा जाएगा. जिसकी ओर समूचे महाराष्ट्र की नजर रहेगी.