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  • गोल्ड आयात में कमी लाने की कोशिश विफल
  • देश में कुल भंडार 25,000 टन
  • मंदिर ट्रस्टों के पास 4,000 टन
  • 3 वर्षों में जमा हुआ सिर्फ 14.30 टन 

मुंबई. देश में रखे सोने को उपयोग में लाकर भारी गोल्ड इम्पोर्ट में कमी लाने के लिए शुरू की गई मोदी सरकार की स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (जीएमएस) तमाम कोशिशों के बाद भी लोकप्रिय नहीं हो पा रही है. हालांकि योजना में गोल्ड डिपॉजिट बढ़ने लगा है, लेकिन देश में जितना 25,000 टन सोने का अनुमानित भंडार है, उसको देखते स्कीम में पिछले तीन ‍वर्षों में सिर्फ 14.30 टन सोना ही जमा हुआ है. नवंबर 2015 से लागू की गई इस योजना में घरों में रखा सोना तो बहुत ही कम आया है, अधिकतम (करीब 95%) मंदिर ट्रस्टों का ही सोना बैंकों में जमा हुआ है. इस योजना के तहत बैंक गोल्ड या ज्वैलरी जमा कर उस पर अवधि के अनुसार 0.5% से लेकर 2.50% तक ब्याज देते हैं.

बड़े जोर-शोर से शुरू हुई थी स्कीम

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में स्वर्ण मुद्रीकरण योजना बड़े जोर-शोर से शुरू की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य घरों और संस्थानों के पास भारी मात्रा में बेकार रखे सोने को रिसाइकिल कर उपयोग में लाना है. ताकि देश में बढ़ते स्वर्ण आयात में कमी आए और व्यापार घाटे में कमी लाकर भारतीय मुद्रा को मजूबत बनाया जाए, लेकिन योजना को उम्मीद के अनुरूप सफलता नहीं मिल पा रही है. 6 बैंकों ने पिछले साल केवल 4.643 टन सोना जमा हुआ. उसमें भी स्टेट बैंक ने ही अकेले 4.370 टन सोना जमा किया है.

5% सोना भी नहीं आया

जीएमएस के तहत वर्ष 2017-18 में 6893.13 किलो सोना आया, लेकिन अगले साल 2018-19 में केवल 2763.12 किलो सोना ही बैंकों में जमा हो सका. हालांकि बीते साल 2019-20 में इसमें वृद्धि हुई हैं. पिछले साल कुल 4643.25 किलो सोना आया. इस तरह पिछले तीन ‍वर्षों में कुल 14,299.50 किलो (14.30 टन) सोना ही जमा हुआ है. जबकि देश में कुल सोना भंडार 25,000 टन होने का अनुमान है. विश्व स्वर्ण परिषद का आंकलन है कि मंदिर ट्रस्टों के पास ही करीब 4,000 टन सोने का भारी भंडार है. इस तरह मंदिर ट्रस्टों का 5% सोना भी स्कीम में नहीं आया है. इसकी सबसे बड़ी वजह वजह जनता और सरकार में विश्वास की कमी है.

सबसे बड़ी वजह विश्वास की कमी

विशेषज्ञों का मानना है कि मंदिर ट्रस्टियों और सरकार में आपसी विश्वास की भारी कमी है. नागरिकों में भी योजना को लेकर डर की स्थिति है, उन्हें लगता है कि स्कीम में सोना जमा कराने पर इनकम टैक्स का झंझट आ जाएगा. ये ही फैक्टर इस योजना की सफलता में सबसे बड़ी बाधा हैं. मंदिर ट्रस्टियों को लगता है कि कहीं सरकार बदलने पर नीतियां भी बदल दी गई तो क्या होगा? लोगों को लगता है कि नई सरकार जमा किए गए मंदिरों के सोने को राष्ट्र की संपत्ति घोषित कर कभी भी अपने अधिकार में ले सकती है. क्योंकि सरकार बदलने के साथ नीतियां बदलना भारत में आम बात है. देश में नीतियों में स्थायित्व नहीं हैं, जो हर ऐसी योजना की सफलता में बाधा है.   

लोगों में भरोसा जगाए सरकार : संजय शाह

ज्वैलमेकर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय शाह का कहना है कि यह स्कीम बहुत अच्छी है और यदि देश में रखे स्वर्ण भंडार का 5% सोना भी हर साल स्कीम के तहत बैंकों में जमा होने लग जाए तो डॉलर के सामने रुपया मजबूत होकर मौजूदा 74 के स्तर से सुधरकर 60 के स्तर पर आ सकता है. क्योंकि देश में हर साल इतना ही सोना (800 से 900 टन) आयात होता है. लेकिन योजना को सफल बनाने के लिए सरकार को सर्वप्रथम लोगों में भरोसा कायम करना होगा कि भविष्य में नीतियां नहीं बदलेगी. रिजर्व बैंक को जमा सोने पर अपनी गारंटी देकर भरोसा जगाना चाहिए. तभी स्कीम सफल हो पाएगी. जो देश की आर्थिक मजबूती के लिए जरूरी है.   

क्या है योजना?

स्कीम के तहत जमाकर्ता बार, सिक्के, ज्वैलरी के रूप में न्यूनतम 30 ग्राम सोना बैंकों में जमा कर सकते हैं. कोई अधिकतम सीमा नहीं है. जमा अवधि एक साल से लेकर 15 साल की रहती है. अवधि के अनुसार ही ब्याज मिलता है. स्टेट बैंक एक से तीन साल के लिए 0.50% से 0.60% ब्याज देता है और 5 से 7 साल के लिए 2.25% और 12 से 15 साल के लिए 2.50% ब्याज दे रहा है. यह ब्याज कर मुक्त होता है. पूंजीगत लाभ भी आयकर से मुक्त किया जाता है. जमाकर्ता के पास विमोचन पर नकद या सोना लेने का ऑप्शन होता है. हालांकि सोना ज्वैलरी के रूप में नहीं शुद्ध गोल्ड बार के रूप में मिलता है.