Economic Development

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    मुंबई:  किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक उत्थान की कल्पना उद्योगपतियों (Industrialists) के बिना नहीं की जा सकती। देश के आर्थिक विकास (Economic Development) में उद्योगपतियों की भागीदारी एक तरह से सबसे ज्यादा होती है। उद्योगपति देश की जनता के लिए स्वदेशी उत्पाद (Make in India) बनाते हैं। उद्योगपति ना केवल आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं बल्कि सरकार के राजस्व (Tax Revenue) में सबसे ज्यादा योगदान देने के साथ बड़ी संख्या में रोजगार (Employment) प्रदान कर समाज का विकास करते हैं। समाज कल्याण (Social Work) के कार्य करने में सबसे आगे रहते हैं। 

    निवेशकों को निवेश के अवसर प्रदान कर वेल्थ (Wealth) क्रिएट करने में मदद करते हैं, लेकिन इन सब अति महत्वपूर्ण योगदानों के बावजूद भारत में उद्योगपतियों को प्यार नहीं बल्कि तिरस्कार मिलता है। वोट बैंक की राजनीति करने वाले कुछ स्वार्थी नेताओं के बहकावे में आकर आम जनता इन्हें नायक मानने की बजाय खलनायक मानने लगती है, जबकि असली हीरो हमारे उद्योगपति ही हैं, जो सही अर्थों में राष्ट्र निर्माण करते हैं। टाटा, बिरला, बजाज, अंबानी, अडानी, महिंद्रा, अग्रवाल, श्रीनिवासन, मुंजाल, नारायणमूर्ति, प्रेमजी, नाडार से लेकर नई पीढ़ी तक के उद्योगपति ही हमारे असली हीरो हैं। हमें इन पर गर्व होना चाहिए।

     विदेशी कंपनियों के भारतीय सीईओ पर गर्व क्यों?

    यह विडंबना है कि भारत छोड़ विदेशों में बस चुका कोई भारतीय, गूगल, पेप्सी, माइक्रोसॉफ्ट या ट्विटर जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी का सीईओ बनाया जाता है तो हम भारतीय उस पर गर्व करते हैं, लेकिन भारत में ही रहकर भारत की प्रगति में योगदान देने वाले उद्योगपतियों पर गर्व नहीं करते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ बनाए जाने वाले तमाम भारतीय तो पहले ही देश छोड़ चुके होते हैं, उन्हें भारत से प्यार कहां है? अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारतीय मूल के पेशेवरों को सीईओ बनाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत उनके लिए बहुत बड़ा मार्केट है और उनकी सोच है कि भारतीय मूल के व्यक्ति को ही सीईओ बनाने से भारतीय उपभोक्ता उनके उत्पादों को अधिक पसंद करेंगे। उनकी अनुचित व्यापार प्रथाओं का विरोध कम करेंगे।

    जोखिम लेकर उद्योगों का निर्माण

    देश की जनता बालीवुड कलाकारों या क्रिकेटरों को सिर आंखों पर बिठाती हैं, उन्हें ही अपना हीरो मानती है। ऐसा नहीं है कि फिल्मी कलाकारों या क्रिकेटरों का योगदान नहीं है, उनका योगदान अपनी जगह ठीक है, उनकी सफलताएं भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। लेकिन देश के आर्थिक विकास और रोजगार की दृष्टि से जितना बड़ा योगदान देश के बड़े उद्योगपतियों का है, उतना और किसी का नहीं है। ये आर्थिक जोखिम लेकर बड़े-बड़े उद्योगों का निर्माण करते हैं और युवाओं को अच्छे वेतन के साथ रोजगार प्रदान कर खुशहाल जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इसलिए सही मायने में असली हीरो उद्योगपति ही हैं। हमें इन पर अधिक गर्व होना चाहिए।

    वोट बैंक की राजनीति के शिकार

    राष्ट्र निर्माण में देश के दिग्गज उद्योगपतियों के अहम योगदान के बावजूद भी आम जनता इन पर उतना गर्व नहीं करती है, जितने के वे हकदार हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि विपक्ष में रहने वाले अनेक राजनीतिक दल अपनी स्वार्थपूर्ण वोट बैंक की राजनीति के लिए इनके खिलाफ दुष्प्रचार करते हैं और जनता की नजरों में इन्हें गिराने की कोशिश करते हैं। यह भी सच है कि जब वही राजनीतिक दल सत्तारूढ़ होता है, तब वह इन उद्योगपतियों को निवेश के लिए आमंत्रित करने ‘रेड कार्पेट’ बिछाता है।

     सबसे बड़े रोजगार प्रदाता

    समाज और देश के विकास के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा और रोजगार होती है। रोजगार की बात करें तो कुल रोजगार में केंद्र व राज्य सरकारें 2।90 करोड़ से अधिक नौकरियां दे रही हैं, जो संगठित कार्यबल का मात्र 2।5% है। जबकि निजी संगठित उद्योग क्षेत्र करीब 8% रोजगार देता है और असंगठित क्षेत्र 90% रोजगार देते हैं। देश के 10 बड़े औदयोगिक समूह और बड़ी कंपनियां जितने रोजगार (करीब 27 लाख) देती हैं, वे केंद्र सरकार के 48 लाख कर्मचारियों की तुलना में 50% से अधिक हैं। इनमें टाटा ग्रुप सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। समाजसेवा में सबसे आगे रहने वाले टाटा ग्रुप के कर्मचारियों की संख्या 15 लाख है, जो रक्षा और रेलवे के बाद सर्वाधिक है। जबकि मुकेश अंबानी का रिलायंस ग्रुप 2.36 लाख कर्मचारियों के साथ एक बड़ा रोजगार प्रदाता हैं और कुमारमंगलम बिरला के नेतृत्व वाले आदित्य बिरला ग्रुप के 1.40 लाख कर्मचारी हैं। इसलिए हम भारतीयों को इन सच्चे नायकों पर गर्व होना चाहिए।

    किसने कितने दिए रोजगार

    टाटा  ग्रुप    15 लाख
    इंफोसिस   2.64 लाख
    रिलायंस ग्रुप    2.36 लाख
    महिंद्रा ग्रुप  2.50 लाख
    विप्रो    2.20 लाख
    HCL  1.87 लाख
    बिरला ग्रुप  1.40 लाख
    टीवीएस ग्रुप 0.39 लाख
    बजाज ग्रुप 0.36 लाख
    अडानी ग्रुप 0.23 लाख