(File Photo)
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    कांग्रेस व एनसीपी (Nationalist Congress Party, NCP),दोनों ही महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल हैं परंतु जरूरी नहीं है कि विभिन्न मुद्दों पर उनके नेताओं के विचार समान हों. हर किसी का अपना अनुभव व दृष्टिकोण हो सकता है. इस समय विवाद का मुद्दा बैलेट पेपर से या ईवीएम से चुनाव कराने को लेकर है. सच पूछा जाए तो अभी यह विषय उठाने की आवश्यकता भी नहीं थी क्योंकि हाल-फिलहाल में महाराष्ट्र में कोई चुनाव नहीं हो रहा है. पिछले दिनों कांग्रेस नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले (Nana Patole) ने केंद्र की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार से चुनाव में बैलेट पेपर सिस्टम वापस लाने की मांग की थी.

    तब उन्होंने कहा था कि कई देशों ने अपने यहां ईवीएम (Electronic Voting Machines)(EVMs) का इस्तेमाल छोड़ दिया है. मतदान केंद्रों पर वैकल्पिक व्यवस्था रखी जाए जिसमें कोई मतदाता चाहे तो उसे ईवीएम की बजाय बैलेट पेपर से मतदान करने की छूट दी जाए. पटोले के बयान के विपरीत उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने ईवीएम पर पूरा भरोसा जताया. पवार ने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव हारने के बाद इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों को दोष देते हैं जबकि मुझे ईवीएम पर पूरा विश्वास है. राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस सत्ता में आई जबकि वहां विधानसभा चुनाव में ईवीएम का ही इस्तेमाल किया गया था. जब कोई पार्टी चुनाव जीतती है तो सब कुछ ठीक होता है लेकिन जब वे बुरी तरह हार जाते हैं तो आरोप लगाते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी की गई है.

    अजीत पवार के इस बयान पर नाना पटोले ने कहा कि बैलेट पेपर को लेकर मेरी निजी राय है, लेकिन मैं मानता हूं कि हर किसी को वोटिंग की आजादी मिलनी चाहिए. यदि अजीत पवार को ईवीएम से वोट देना पसंद है तो वे ऐसा कर सकते हैं लेकिन जो लोग मतपत्र या बैलेट से वोटिंग करना चाहते हैं, उन्हें भी वैसा करने की आजादी मिलनी चाहिए. विपक्षी पार्टियां प्राय: आरोप लगाती रही हैं कि ईवीएम के साथ छोड़छाड़ की जा सकती है और उन्होंने केंद्र सरकार से बैलेट पेपर सिस्टम वापस लाने की मांग की है. राजद और कांग्रेस का बिहार में चुनावी गठबंधन था, उन्होंने भी ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाया था. चुनाव आयोग ने भी ईवीएम का बचाव करते हुए कहा था कि इसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. अजीत पवार और नाना पटोले के बयानों से स्पष्ट है कि राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार के घटक दलों में बैलेट से चुनाव कराए जाने को लेकर आम सहमति बना पाना आसान नहीं होगा.