Catastrophe threat from large dams

भारत में भी आजादी के बाद भाखड़ा-नांगल बांध बनाए गए जिनकी वजह से पंजाब में खुशहाली आई.

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एक समय था जब बड़े बांध किसी देश की प्रगति की निशानी माने जाते थे. अमेरिका का हूवर डैम और टेनेसी वैली अथॉरिटी के बांध अत्यंत प्रसिद्ध थे. भारत में भी आजादी के बाद भाखड़ा-नांगल बांध बनाए गए जिनकी वजह से पंजाब में खुशहाली आई. सर एम. विश्वेश्वरैया द्वारा 1956 में निर्मित हीराकुड बांध भी इंजीनियरिंग की अनूठी मिसाल माना जाता है. कृषि के लिए बांधों और नहरों की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता लेकिन जब उत्तराखंड में टिहरी बांध बना तो पर्यावरणवादियों ने इसका तीव्र विरोध किया और जनता भी बड़े बांधों के खतरे को लेकर पहली बार सजग हुई.

सुंदरलाल बहुगुणा ने इसे लेकर सबल तर्क प्रस्तुत किए थे. यह बात गौर करने लायक है कि बड़े बांधों की आयु 50 से 100 वर्ष तक ही होती है. नदी का प्रवाह रोक रखने वाले इन बांधों में दरार आने लगती है और बार-बार मरम्मत की जरूरत पड़ती है. उनकी जल भंडारण क्षमता कम हो जाती है और बांध फूटकर जलप्रलय आने की आशंका बढ़ती चली जाती है. इसके अलावा नदियां अपने प्रवाह के साथ जो उपजाऊ मिट्टी लाती हैं, उन्हें भी बांध रोक लेता है. बांध में रेत, मिट्टी, पत्थर जमा होते चले जाते हैं इसलिए एक समय ऐसा आता है जब ये बांध निरुपयोगी हो जाते हैं. तब उन्हें वैसे ही छोड़ देना पड़ता है. नदी का प्रवाह रोकने से जलधारा भी शुद्ध नहीं रह पाती.

गंगा में प्रदूषण बढ़ने की वजह उस पर जगह-जगह बनाए गए बांध ही हैं. भारत में पर्यावरणवादियों की किसी ने नहीं सुनी लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2025 में 1,115 बड़े बांध 50 वर्ष या उससे ज्यादा पुराने हो जाएंगे. विश्व के 58,700 बड़े बांधों का निर्माण 1930 से 1970 के बीच हुआ था. इनमें से 32,716 बड़े बांध 4 एशियाई देशों चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया में हैं. ये बांध खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं और जलराशि के बढ़ते दबाव में इनकी दीवार टूटने का खतरा पैदा हो गया है.

यदि कोई भी बांध फूटा तो लाखों लोगों की जान जा सकती है और अनेक शहर व गांव डूब सकते हैं. इस खतरे के बारे में बांध निर्माताओं ने कभी सोचा ही नहीं था. जिन बांधों के जरिए फसलें लहलहाती हैं और संपन्नता आती है, वे ही फूटने पर महाविनाश या प्रलय ला सकते हैं.