Digital dream and reality

सरकार और उसका शिक्षातंत्र यह मानकर क्यों चलता है कि सभी छात्र-छात्राएं व उनके अभिभावक साधनसंपन्न हैं और अपने बच्चों के लिए सारी सुविधा तत्काल जुटा देंगे? देश की बहुत बड़ी आबादी के पास न तो रोजगार है, न आय के सुनिश्चित साधन!

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सरकार और उसका शिक्षातंत्र यह मानकर क्यों चलता है कि सभी छात्र-छात्राएं व उनके अभिभावक साधनसंपन्न हैं और अपने बच्चों के लिए सारी सुविधा तत्काल जुटा देंगे? देश की बहुत बड़ी आबादी के पास न तो रोजगार है, न आय के सुनिश्चित साधन! यह सही है कि कोरोना संकट के चलते स्कूल जाकर पढ़ाई करना संभव नहीं रहा, इसलिए ऑनलाइन कक्षाओं की व्यवस्था की गई है परंतु यह प्रावधान करने से पहले जमीनीस्तर पर सारी बातों को देख-परख लेना था और उसके बाद ही निर्णय लेना चाहिए था। यह भी विचार नहीं किया गया कि साधनहीन पालकों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जरूरी उपकरण जुटाना संभव हो पाएगा भी या नहीं? जब आंख मूंदकर फैसले किए जाते हैं तो उनके कुछ घातक नतीजे भी सामने आते हैं। केरल के मल्लपुरम के वलांचेरी में ऑनलाइन कक्षा में भाग नहीं ले सकने की वजह से क्षुब्ध होकर 9वीं कक्षा की एक गरीब दलित छात्रा ने आत्मदाह कर लिया। वह लड़की पढ़ाई में होशियार थी लेकिन घर का टीवी काफी समय से खराब होने तथा घर में किसी के भी पास स्मार्टफोन नहीं होने से वह डिजिटल कक्षा में हिस्सा नहीं ले सकी। इस लड़की के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और लॉकडाउन की वजह से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। कुछ ही घंटे पहले स्कूल व कालेज छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की गई थीं। देविका नामक यह लड़की डिजिटल कक्षा में हिस्सा नहीं ले पाने की वजह से परेशान व दुखी थी। इस लाचारी की हालत में उसने खुदकुशी कर ली और अपने परिजनों को हमेशा के लिए टीस दे गई। केरल के विधायक उबैद हुसैन थंगल ने आरोप लगाया कि यह छात्रा अधिकारियों की अदूरदर्शिता का शिकार हुई जो ऑनलाइन कक्षाएं शुरू करने से पहले समुचित जानकारी नहीं जुटा पाए। वास्तव में डिजिटल कक्षा शुरू करने से पहले इस बात का पता लगा लिया जाना चाहिए था कि सभी छात्र-छात्राओं के पास टीवी, कंम्प्यूटर, लैपटाप या कम से कम स्मार्टफोन है भी या नहीं! यदि किसी के पास ऐसी सुविधा नहीं है तो उसके लिए उपयुक्त व्यवस्था करने पर शिक्षा विभाग ध्यान दे सकता था। जब शिक्षा का अधिकार सभी के लिए है तो कोई भी छात्र गरीब या साधनहीन होने के कारण उससे वंचित नहीं रखा जा सकता। ‘राइट टु एजुकेशन’ के तहत ऐसे छात्र-छात्राओं के लिए प्रावधान होना चाहिए कि यदि उनके अभावग्रस्त अभिभावक स्मार्टफोन या टीवी की व्यवस्था कर पाने में असमर्थ हैं तो उन्हें सरकारी खर्च से ये सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। जिस देश में गरीब बच्चे मिड-डे मील के आकर्षण की वजह से स्कूल जाते हों, वहां वे ऑनलाइन पढ़ाई का साधन कहां से लाएंगे?