ऐसी कौन सी विवशता, कालेधन पर सरकार का मौन

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    विदेशी बैंकों में जमा कालाधन हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. ऐसा कहा जाता रहा  कि यदि वह ब्लैक मनी वापस लाई जाए तो हमारी अर्थव्यवस्था की सारी कमियां दूर हो सकती हैं और देशवासियों का जीवन खुशहाल बनाया जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के पूर्व अपने भाषणों में कहा था कि विदेश से कालाधन लाकर हर भारतीय के खाते में 15 लाख जमा किए जाएंगे. यह बात अलग है कि बाद में गृहमंत्री अमित शाह ने इसे चुनावी जुमला बताया था.

    अभी कांग्रेस सांसद विन्सेंट पॉल ने संसद में कालेधन का मुद्दा उठाते हुए ब्योरा मांगा कि गत 10 वर्षों में स्विस बैंकों में कितना कालाधन जमा हुआ? सरकार ने विदेश से कालाधन लाने के लिए क्या कदम उठाए? कितने लोगों की इस संबंध में गिरफ्तारी हुई? कितने लोगों पर चार्जशीट दाखिल की गई? कितना कालाधन भारत आनेवाला है और वे किससे और कहां से आएगा? इन सवालों पर सरकार ने चुप्पी साध ली लेकिन वित्त राज्यमंत्री ने इतना जरूर कहा कि सरकार ने विदेश में जमा कालाधन वापस लाने की काफी कोशिशें कीं. कालेधन की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने ‘दि ब्लैक मनी एंड इम्पोजीशन ऑफ टैक्स एक्ट’ बनाया और उसे 1 जुलाई 2017 से लागू किया. कालेधन पर एसआईटी का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के अवकाशप्राप्त जज होते हैं.

    इसके अलावा सरकार ने बताया कि ब्लैक मनी कानून के तहत 107 केस दर्ज हुए तथा 8,216 करोड़ रुपए की वसूली हुई. एचएसबीसी केस में 8,465 करोड़ रुपए भी अघोषित आय पर टैक्स व पेनाल्टी लगाई गई. इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) मामले में 11,010 करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता चला है. पनामा पेपर लीक मामले में 20,078 करोड़ रु. की अघोषित आय का पता चला. पैराडाइज पेपर लीक में 246 करोड़ रु. की अघोषित आय का पता चला. यह सारी कार्रवाइयां अपनी जगह हैं लेकिन काले धन को लेकर कांग्रेस के बुनियादी सवालों पर सरकार ने मौन साध लिया.