पर्यटनस्थल बन उभरती दुर्लक्षित मुतनूर पहाडी

  • लॉकडाऊन ने बढाया पर्यटकों का इस ओर ध्यान
  • पर्यटन विकास को दे सकती है, गति

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गडचिरोली. भलेही सरकार गडचिरोली जिले के साथ छलावा करती नजर आ रही है, मात्र प्रकृति ने इस जिले को अपने प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा है. राज्य के अंतिम छोर पर बसे गडचिरोली जिले से पिछडेपन का दाग स्वाधिनता के 7 दशक बाद भी नहीं मिटा है, इसके लिए सरकार की अनदेखीभरी नजर को जिम्मेदार माना जा सकता है. मात्र कुदरत के निगाहों से सबके लिए बराबर बटता है. ऐसे ही गडचिरोली जिले को प्रकृति ने अपने कारिगरी से अनमोल बनाया है. जिले में विपुल मात्रा में स्थित वनसंपदा, पहाड, बारमासी नदीयां यह विहंगम दृष्य शहरी क्षेत्रों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. ऐसा ही विहंगम दृष्य चामोर्शी तहसील में स्थित मुतनूर पहाडी है. यह पहाडी पर्यटकों की नजर से काफी दिनों से छूपी हुई थी. मात्र कोरोना महामारी के चलते किए गए लॉकडाऊन में इस पहाडी की ओर जिले के पर्यटकों का रूझाव हुआ. जिससे यहां पर्यटकों की भीड बढने लगी. जिससे इन दिनों यह दुर्लक्षित पहाडी पर्यटन क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आ रही है. गडचिरोली जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूरी पर स्थित यह पर्यटनस्थली जिले के पर्यटन विकास में अहम साबित हो सकती है. इसके लिए सरकार व प्रशासन को उक्त क्षेत्र में आवश्यक सुविधाएं निर्मित करना आवश्यक है. 

इसे कहां जाता छोटी पचमढी

मध्यप्रदेश राज्य के सातपुडा पर्वतश्रृंखलाओं में स्थित पचमढी पर्यटन क्षेत्र अनेक पर्यटकों को आकर्षित करता है. वहां के उगते सुरज का नजारा देखने अनेक पर्यटक पहुंचते है. उसी तर्ज पर गडचिरोली जिले में स्थित मुतनूर पहाडी में भी सर्दी के दिनों में उगते सुरज का नजारा विहंगम रहता है. जिससे इस पहाडी को कुछ पर्यटकों द्वारा छोटी पचमढी भी कहां जाता है. सर्दी के धुंधभरे वातावरण में इस पहाडी का नजारा अनोखा होता है. जिससे अनेक पर्यटक इस पहाडी पर तडके के दौरान चढना पसंद करते है. पहाडी के उपर चढने के बाद दिखनेवाला नजारा कुछ अलग ही होता है. 

सुविधाओं की दरकार

मुतनूर पहाडी जिले के पर्यटनक्षेत्र में अहम साबित हो सकती है. मात्र यहां विभीन्न सुविधाओं का अभाव है. जिससे पर्यटकों को असुविधाएं होती है. पहाडी पर चढने के लिए कुछ दुरी तक सिडीयां तैयार की गई है. मात्र आगे पथरीले रास्तों से ही गुजरना होता है. वहीं यहां शुद्ध पेयजल, पर्यटकों को ठहरने की व्यवस्था नहीं है. लॉकडाऊन कालावधि में पर्यटकों की संख्या बढने के कारण इस क्षेत्र के विकास की आंस जग गई है. पर्यटक आने के चलते परिसर के कुछ लोगों यहां छोटी-मोटी दुकाने लगा रहे है. जिससे इन ग्रामीणों को इस माध्यम से रोजगार भी मिला है. रविवार व अवकाश के दिन यहां पर्यटकों की संख्या अधिक होने से केवल इन दिनों ही यहां के छोटे-मोटे व्यावसाईयों को रोजगार मिलता है. 

गुढीपाडवा पर होता मेले का आयोजन

मुतनूर पहाडी के निचे मुतनूर गांव बसा हुआ है. जो पावीमुरांडा ग्रापं अंतर्गत आता है. मुतनूर पहाडी के संदर्भ में ग्रामीणों से पुछने पर उन्होने बताया कि, गुडीपाडवा के दिन यहां 2 दिवसीय मेले का आयोजन होता है. जिससे आदिवासी संस्कृति के अनुसार यहां पुजा,अर्चना व परंपरागत सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है. इससे पूर्व केवल इन्ही दिनों यहां लोग आते थे. मात्र अब धिरे धिरे यहां के पर्यटन क्षेत्र की ख्याती दूरदराज तक फैल रही है. जिससे अब रोजाना तथा खासकर अवकाश के दिन यहां पर्यटकों की भीड देखने को मिल रही है. सरकार व प्रशासन इस स्थली की ओर ध्यान दे, तो यह क्षेत्र एक अच्छे पर्यटनस्थली के रूप में उभर सकता है. साथ ही इससे इस पिछडे गांव का विकास भी हो सकता है. 

यह आदिवासीयों की श्रद्धास्थली

यह परिसर आदिवासी बहुल है. जिससे परिसर के आदिवासी समुदाय ने पहाडी पर भगवान शिव तथा आदिवासी दैवत कुपार लिंगो की प्रतिमा स्थापित की है. जिससे यह क्षेत्र आदिवासीयों की श्रद्धास्थली भी है. विशेष मौकों पर यहां आदिवासी समुदाय द्वारा पुजाअर्चना की जाती है. आदिवासी समुदाय प्रकृति पुजक भी है. जिसके चलते इस पर्यटनस्थली को संजोए रखने में आदिवासी समुदाय का भी अहम योगदान है. उन्हे के भरोसे आज पर्यटकों को इस अनमोल स्थली विरासत के रूप में देखने को मिल रही है. अब सरकार व प्रशासन को भी इसके विकास के लिए आगे आने की आवश्यकता है, ऐसी भावना पर्यटकों द्वारा व्यक्त हो रही है.