विकास की प्रतीक्षा में मर्रीगुडेम गांव, ना पक्की सडक, ना यातायात सुविधा

  • स्वास्थ्य सेवा के लिए भी तरस रहे लोग

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– सतिश पडमाटिन्टी

सिरोंचा. सिरोंचा तहसील के मर्रीगुडेम गांव विकास के इन्तेजार में पीढ़ी दर पीढ़ी प्रतीक्षा कर रहा है. गांव में पहुंचने के लिए न पक्की सड़क है, ना ही परिवहन की सुविधा. गांव पहुंचने के लिए जिस सड़क का प्रयोग होता है. उस मार्ग पर एक नाला है. जो अपनी विकराल रूप धारण करते ही गांव को कट ऑफ क्षेत्र बना देता है. जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्या निर्माण होने पर भगवान ही उनका मालिक है. गांव जाने के लिए जिस नाले को पार करना होता है. उस पर पूर्व में निर्माण किया रपटा क्षतिग्रस्त हो चुका है. जिससे आवागमन व्यापक तकलीफ भरा होता है. 

तहसील मुख्यालय से महज 10 किमी के अंतराल में स्थित गांव मर्रीगुडेम जो कि मेड़ाराम ग्राप पंचायत अंतर्गत आता है. गांव में लगभग 40 मकानों में 200 के करीब लोग निवासरत है. इस गांव को आदिवासी बहुल गांव कहा गया है. समूचा गांव कृषि पर निर्भर होकर जीवनयापन करता है. वह भी इंद्रदेव के रहमो करम पर आधारित है. घने जंगलों के बीच स्थित गांव में जाने के लिए एक पक्की सड़क तक नही निर्माण की गई है. हालांकि एक सड़क निर्माण किया गया है, मात्र वह भी गड्ढें ,पथरीली, किचड़ से भरी हुई है. रास्ते पर एक नाला आता है. जिस पर पूर्व में निर्माण किया गया रपटा टूट कर नष्ट हो चुका है. इसके चलते आवागमन में भारी दिक्कतें उत्पन्न होने लगे है. जबकि इस गांव का पंचायत मुख्यालय महज चंद मिनटों की सफर की दूरी पर है. इसके साथ ही राजमार्ग 353 C की दूरी लगभग 4 किमी के आसपास बतायी गयी है. बावजूद इसके गांव आज भी विकास को तरस रहा है. गांव में पक्की इमारत के नाम सरकारी स्कूल भवन है. बाकी अधिकत्तर मकान मिट्टी के दिवार, ताड़ के पत्तों से ढके हुए, झोपड़ी नुमा मकान हरे भरे वनांचल के बीच स्थित है. ये गांव प्राकृतिक दृष्टि से व्यापक संपन्न है, मात्र बुनियादी सुविधाएं व विकास की दृष्टि से उतना ही निर्धनता का श्राप झेल रहा है. गांव की कृषि पर नजर डाले जाए तो समूचा गांव कृषि पर आधारित है. कृषि के लिए इंद्रदेव पर निर्भर रहना पडता है. ना तालाब है, ना सिंचाई की सुविधाएं. ग्रामीण फिर भी कृषि करने में हिम्मत नही हारते है.

जबकि इस गांव में शिक्षा की ज्योत 1973 में ही जलाई गई है. मगर विकास की ज्योति अब तक नही जल पाई है. ये जानकारी वहां की स्कूल को देखने पर प्राप्त हुई है. जिस पर उसका निर्माण समय एवं वर्ष का उल्लेख किया हुआ है. गांव में एक आंगनवाड़ी भी संचालित है. हालांकि ग्रामीणों ने बताया है कि आंगनवाड़ी में भी पोषक आहार, उसके अलावा मेनू के मुताबिक डाइट नही मिल रहा है. इस ओर जिम्मेदार विभाग को ध्यान देने की जरूरत है. स्वास्थ्य के संदर्भ में कहां जाए तो गांव में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों पर ज्यादा निर्भर है. वनांचल गांव होने के कारण गांव में अक्सर जंगली जानवरों की दहशत बनी रहती है. ग्रामीणों की माने तो हाल ही के दिनों में गांव के समीप से बाघ ने गांव के पालतू जानवरों पर धावा बोला है. इसको लेकर ग्रमीण दहशत में है. इस ओर वन विभाग को ध्यान देने की जरूरत है. ताकि जानमाल की हानि के खतरे को टाला जा सके. ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि गांव के समीप बहने वाले नाले पर पुलिया की की सुविधा करें. साथ ही गांव पहुंचने के लिए जिस रास्ते का प्रयोग होना है, उसे सुव्यवस्थित किया जाए.