ऐतिहासिक धरोहरों की नगरी सिरोंचा, आज भी बयाँ कर रही है अपनी गौरव गाथा

  • अनेकों भवन एक शताब्दी से भी पुरानी

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– सतिश पडमाटिन्टी

सिरोंचा. ऐतिहासिक नगरी सिरोंचा के बारे में कहा जाए तो यह नगर उन दिनों में भी अपनी गौरव गाथा को बयां कर चुकी है. जब यह क्षेत्र घनघोर जंगलों, विशाल पर्वत श्रृंखलाओं से ढका हुआ रहता था. इस नगर के बारे में जानकार बताते है कि यह नगर नवाबों के राज में भी नवाबों का पसन्दीदा जगहों में से शुमार हुआ करता था. उसके बाद ब्रिटिश शासनकाल में भी यह नगर ब्रिटिश प्रशासकीय अधिकारियों का पहली पसंद हुआ था. यह क्षेत्र दंडकारण्य क्षेत्र में विकसित जगहों में शुमार हुआ करता था. इस नगर में आज भी ऐसे अनेक भवन , धार्मिक स्थल , सामाजिक केंद्र मौजूद है, जो आज भी अपनी वैभवशाली इतिहास को प्रदर्शित कर रहे है. जिनकी उम्र अनेक शताब्दी बीत चुके है.

सिरोंचा के बारे में कहा जाए तो यह प्राणहिता नदी के तट पर बसा हुआ ऐतिहासिक नगरी है. जहाँ आज भी अनेकों ऐसे स्थल मौजूद है, जो अपनी वैभवशाली इतिहास को बयां कर रहे है. उनका निर्माण कला, निर्माण की गुणवत्ता, मजबूती आज भी लाखों करोड़ों लागत की भवनों को कमजोर साबित कर रहे है. इन ऐतिहासिक स्थलों की मजबूती इतनी है कि वे आज भी एक ईंच भी नष्ट हुए बिना ज्यों का त्यों खड़े है. हालांकि इनमे से कुछ का समय समय पर जीर्णोद्धार होता आया है. मगर उनकी बुनियादी ढांचा आज भी मजबूत है. जो देखते ही बनता है.

नगर में मौजूद ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में विठठलेश्वर मंदिर, बालाजी मंदिर, वली हैदरशाह दरगाह, आसरअल्ली मार्ग पर स्थित चर्च इन सभी धार्मिक स्थलों की उम्र एक शताब्दी से भी ज्यादा हो चुकी है. नगर में स्थित विश्रामगृह , सोमनपल्ली का विश्रामगृह, कोप्पेला का विश्रामगृह ये सभी भी ब्रिटिश काल मे बनाये गए है. हालांकि इनमे से कोप्पेला का विश्रामगृह क्षतिग्रस्त हो जाने की जानकारी मिली है. बाकी दोनों आज भी अपनी गौरव गाथा प्रदर्शित कर रहे है. कुछ एक भवन जो अब सरकारी कार्यलयों के रूप में प्रयोग में लाये जा रहे है. उनमें से पुलिस थाना, पंचायत समिति कार्यालय, तहसील कार्यालय, मनोरंजन क्लब (वर्तमान दूरदर्शन केंद्र), पुराना अस्पताल भवन, हवामान केंद्र, चिटटूर का विश्राम गृह ये सभी भवन ब्रिटिशकालीन धरोहर बताये गए है. इनमे कुछ के निर्माण तिथि की जानकारी है. कुछ की नही है. मगर वे सभी धरोहर आज भी अपनी वैभवशाली गौरव गाथा बयाँ कर रहे है. इन ऐतिहासिक धरोहरों में सबका अपना एक अलग इतिहास है. कुछ भवनों का इतिहास आज भी स्थानीय जानकार बताते है. कुछ की सुनी सुनाई जानकारी भी लोग बताते है. 

इसी ऐतिहासिक नगरी में कुछ ऐसे भवन भी मौजूद है. जो इनके अपेक्षा काफी बाद में बनाये गए है. मगर देखरेख का अभाव एवं अनदेखी के चलते कम समय मे ही अपने जीर्णोद्धार के लिए तरस रहे है. जबकि इनका जीर्णोध्दार कर  बेहतर उपयोग किया सकता है. इनमें शेतकरी भवन, कृषि गोडाउन, सिंचाई विभाग के क्वाटर्स, आसरअल्ली मार्ग पर बिजली सब स्टेशन के सामने की दो मंजिला भवन प्रशासन चाहे तो इनका जीर्णोध्दार कर इनका उपयोग कर सकता है. नही तो इन्हें बनाने में लगे लाखों रुपयों का कोई मोल नही रह जाएगा.                     

इसके अलावा तहसील में ऐसे अनेकों नैसर्गिक केंद्र है जिन्हें विकसित कर पर्यटन के क्षेत्रों के रूप में उपयोग में लाये जा सकते है. इनमे सोमनूर का संगम, बामणी का झरना (जलप्रपात), पातगुड़म  एवं कोरला के मध्य नदी में स्थित चट्टानों की श्रृंखलाएँ, जितम गंडी का जल प्रपात आदि शामिल है. इन्हें विकसित कर पर्यटन केंद्र के रूप में जनमानस के लिए उपलब्ध कराये सकते है. जबकि पडौसी राज्य तेलंगाना ने अपने क्षेत्र के धार्मिक , नैसर्गिक क्षेत्रों को विकसित कर पर्यटकों एवं भक्तों के लिए खोल दिये गए है. इसके आधार पर हासिल होने वाला राजस्व सालाना लाखों करोडों में होने की बात जानकार बताते है. इन केंद्रों की विकसित होने का फायदा वहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्ता को गति मिलने की बात कही जा रही है.