गोंदिया. जिले में इस बार खरीफ मौसम का नियोजन भी कोरोना संक्रमण से प्रभावित हो गया है. जिला कृषि विभाग कितना भी नियोजन का दावा करें, किंतु खरीफ के सीजन की शुरुआत में ही जिले में यूरिया खाद की महसूस की जा रही है. खरीफ सीजन में धान की नर्सरी लगाने का काम समाप्त हुआ पखवाड़ा बित गया है. समाधानकारक बारिश नहीं होने से धान के रोपों की वृद्धि नहीं हुई है. जिससे यूरिया खाद की मांग बढ़ गई है. जबकि विक्रेता यूरिया खाद की कमी होने का एहसास करा रहे हैं. जिससे किसानों को अधिक दाम देकर यूरिया खाद की खरीदी करनी पड़ रही है.
जिले में 1.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान
जिले में खरीफ सीजन में 1 लाख 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में धान फसल की बुआई की जाती हैं. खरीफ फसल सीजन की शुरुआत में ही जिप व राज्य शासन के कृषि विभाग की ओर से नियोजन किया जाता है. विशेष बात यह है कि जिले में खरीफ सीजन में 60 हजार मीट्रिक टन खाद की मांग होती हैं. इसमें यूरिया व मिश्र खादों का भी समावेश हैं. इसी बीच किसान के खेत में खाद योजना पिछले कुछ वर्षों से जिले में क्रियान्वित की जा रही है. जबकि हर एक सीजन यूरिया खाद की कमी यह किसानों को आर्थिक नुकसान में डाल रहा है. यूरिया खाद की कालाबाजारी जिले के लिए नया विषय नहीं है. इस समस्या को हल करने के लिए अब तक कृषि विभाग को सफलता नहीं मिली है.
चिल्लर में चुकानी पड़ रही ज्यादा राशि
खाद की कमी से पुन: किसानों को आर्थिक नुकसान उठाने मजबूर होना पड़ रहा है. जिले में रासायनिक खाद की कमी निर्मित न हो इसके लिए मशीनरी कार्यरत है. इसी में जिले के कुछ बड़े विक्रेता चिल्लर कृषि केंद्रों के विक्रेताओं की अवहेलना करते दिखाई दे रहे हैं. थोक विक्रेता चिल्लर विक्रेताओं को एमआरपी के दर अनुसार रासायनिक खाद की बिक्री कर रहे हैं. जिससे चिल्लर विक्रेता एमआरपी की दर से अधिक दर पर खाद की बिक्री कर रहे हैं. फलस्वरूप कार्रवाई का सामना भी चिल्लर विक्रेताओं को करना पड़ रहा है. जबकि थोक विक्र्रेताओं का खाद की बिक्री करते समय छोटे दूकानदारों को एमआरपी से कम दर पर खाद की बिक्री करनी चाहिए. जिससे खाद के भाव स्थिर बने रहेंगे. इसके लिए कृषि विभाग को ध्यान देने की जरूरत है.