Some benches of the court may start functioning next week

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नयी दिल्ली:  केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के बाद देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों में 80 प्रतिशत संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वालों की है। इन दोनों राज्यों ने भी प्रवासियों के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अदालत को अवगत कराया । बिहार ने शीर्ष अदालत को बताया कि टिकट के लिए पैसा चुकाने वाले प्रवासियों को वह किराए का भुगतान कर रही है। उत्तर प्रदेश के लिए पेश वकील ने बताया कि भोजन और अन्य सुविधाओं के साथ 1,000 रुपये नकदी देकर उन्हें पृथक-वास में रहने को लेकर प्रेरित करने के लिए कदम उठाए गए हैं।

केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पीठ को बताया कि इन प्रवासी मजदूरों में करीब 80 प्रतिशत संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वालों की रही है । मेहता ने पीठ को बताया कि पृथक-वास के दौरान उत्तरप्रदेश सरकार भोजन, दवा, पानी और अन्य सुविधाओं के लिए भुगतान करती है और पृथक-वास में रहने की अवधि खत्म होने पर उन्हें बसों से संबंधित स्थानों तक पहुंचा दिया जाता है।

पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी थे । उत्तर प्रदेश के लिए पेश वकील ने पीठ को बताया कि हालात से निपटने के लिए राज्य ने असाधारण कदम उठाए हैं । उन्होंने कहा कि प्रवासी श्रमिकों को लाने के लिए विशेष ट्रेनें चलायी गयीं और हर चरण में इससे जुड़े विभिन्न मसलों से निपटने के लिए राज्य ने एक तंत्र की स्थापना की है। उन्होंने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के लिए कैंप लगाए गए और वहां पर उन्हें खाना मुहैया कराया गया । बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि ट्रेनों से आने वालों के अलावा सड़क मार्ग से करीब 10 लाख प्रवासी राज्य पहुंचे । उन्होंने कहा कि पंचायत, प्रखंड और ग्राम स्तर पर पृथक-वास केंद्रों में जरूरी व्यवस्था की गयी है और बाहर से आए लोगों को वहां रखा जा रहा है ।

बिहार के वकील ने बताया कि प्रवासी श्रमिकों द्वारा किए गए टिकट के खर्चे के लिए राज्य सरकार उन्हें भुगतान कर रही है। इस पर, पीठ ने कहा कि बिहार लगता है अकेला ऐसा राज्य है जो प्रवासियों को खर्चे का भुगतान करने पर काम कर रहा है। इसी तरह, राजस्थान के लिए पेश वकील ने पीठ को बताया कि राज्य ने सीमा पर कैंप लगाए और वहां पर करीब 7.5 लाख लोग पहुंचे । मामले में महाराष्ट्र की ओर से वकील जब पेश हुए तो पीठ ने उनसे पूछा कि कितने लोग घर जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं और क्या उन्हें खाना मुहैया कराया गया है या नहीं। महाराष्ट्र के वकील ने जब राज्य द्वारा किए गए खर्चे के बारे में बताना चाहता तो पीठ ने कहा कि इसमें उसकी दिलचस्पी नहीं है । एक वकील ने पीठ से कहा कि राज्यों की तरफ से हलफनामा दाखिल करना महत्वपूर्ण होगा ताकि शीर्ष अदालत को राज्यों द्वारा किए गए काम का पता चलेगा ।

पीठ ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों से जुड़े मुद्दों पर अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए वह राज्यों को समय देगा । वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए करीब ढाई घंटे तक सुनवाई के बाद न्यायालय ने बृहस्पतिवार को निर्देश दिया कि इन श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने के लिये उनसे ट्रेन या बसों का किराया नहीं लिया जाये और इसका खर्च राज्य वहन करे। यात्रा के दौरान इन प्रवासी कामगारों को स्टेशनों पर राज्य और रास्ते में रेलवे को भोजन उपलब्ध कराना होगा। पीठ ने यह भी कहा कि बसों में यात्रा के दौरान भी इन मजदूरों को भोजन और पानी उपलब्ध कराना होगा।(एजेंसी)