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नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पर अमल नहीं किये जाने को लेकर दायर याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र और अन्य को नोटिस जारी किये। याचिका में इस योजना को लागू नहीं करने के दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की कार्रवाई को ‘गैरकानूनी’ और ‘असंवैधानिक’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने हैदराबाद निवासी पेराला शेखर राव की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान केन्द्र तथा अन्य को नोटिस जारी किये।

पीठ ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दिल्ली को नोटिस जारी किये। इस याचिका में इन राज्यों में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिये यह योजना लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाये जिसका जवाब दो सप्ताह में देना है।” याचिकाकर्ता शेखर राव ने संबंधित प्राधिकारी को इन राज्यों की जनता के लिये ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ या संबंधित राज्यों में लागू बीमा योजना का विकल्प उपलब्ध कराने के लिये योजना तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

याचिका में कहा गया है कि केन्द्र 6,400 करोड़ रूपए के बजट से देश के 50 करोड़ लोगों के लिये स्वास्थ्य बीमा योजना लागू कर रहा है और इस योजना के तहत गरीब तबके के लोग कोविड-19 की जांच और उपचार सहित तमाम स्वास्थ्य संबंधी समस्या का इलाज कराने के हकदार हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तेलंगाना, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अलावा सभी राज्यों ने आयुष्पमान भारत योजना लागू की है।

याचिका में पिछले साल के आंकड़ों का हवाला देते हुये कहा है कि आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत देश में 8050 निजी अस्पतालों सहित 16,000 से ज्यादा अस्पताल सूचीबद्ध हैं और प्राधिकारियों ने 1,500 किस्म के उपचारों के लिये खर्च भी निर्धारित किया है। याचिका में कहा गया है कि इन चार राज्यों में यह योजना लागू नहीं करने से यहां की जनता के, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में प्रदत्त अधिकारों का हनन हो रहा है।