AIIMS and Tata Memorial come together to keep the next generation free from cancer for effective prevention of cancer

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    नई दिल्ली: देश में कैंसर के बढ़ते मामलों के बीच देश के दो नामचीन संस्थान कैंसर पर प्रभावी रोक के लिए साथ आए हैं। एम्स और टाटा मेमोरियल ने गर्भवती महिलाओं से उनकी अगली पीढ़ी को होने वाले कैंसर की रोकथाम के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसके तहत यह दोनों संस्थान कैंसर से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए जेनेटिक जांच प्रक्रिया को तेज करेंगे। जिससे यह पता चल पाए कि गर्भ में आने वाले शिशु को कैंसर से किसी तरह का खतरा है या नहीं है। अगर यह पाया जाता है कि बच्चे को कैंसर किसी भी तरह से प्रभावित कर सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चे के भविष्य के इलाज को लेकर रणनीति बनाने में आसानी रहेगी। जिससे प्रारंभिक स्तर पर ही बच्चे में कैंसर के रोकथाम को लेकर कदम उठाए जा सकेंगे। अनुवांशिक कैंसर को लेकर दिल्ली के एम्स के महिला एवं प्रसूति विभाग ने एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया था। इसमें देश और विदेश के कई कैंसर विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। जिसमें यह निर्णय किया गया कि कैंसर से अगली पीढ़ी को बचाने के लिए जेनेटिक जांच को लेकर जनता के बीच जागरूकता उत्पन्न की जाए। इसके अलावा इस सेमिनार में रिस्क रिड्यूजिंग सर्जरी और भ्रूण फ्रीजिंग को भी लोकप्रिय बनाने पर सहमति जाहिर की गई।

    जुटे विशेषज्ञ

    इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में कई देशी-विदेशी विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। उन्होंने इस क्षेत्र में अपने कार्यों के साथ ही अन्य विशेषज्ञों के कार्यों को लेकर भी चर्चा की। इस सेमिनार में हिस्सा लेने वालों में एम्स महिला एवं प्रसूति विभाग की प्रमुख डॉ नीरजा भाटला, प्रोफेसर रंजीत मनचंदा-  वॉल्सन इंस्टीट्यूट ऑफ पापुलेशन हेल्थ- क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी लंदन, डॉ सुषमा भटनागर – प्रमुख आईआरसीएच एम्स और प्रमुख एनसीआई एम्स  झज्जर, डॉ। राजीव सरीन – मेडिकल ऑंकोलॉजिस्ट टाटा मेमोरियल अस्पताल,  डॉ प्रोफेसर राजकुमार टी मेडिकल ऑंकोलॉजिस्ट कैंसर इंस्टीट्यूट एडीवाईएआर चेन्नई, डॉ एसवीएस देव- हेड सर्जिकल ऑंकोलॉजी -एम्स शामिल थे। इस सेमिनार के दौरान उन तमाम बिंदुओं पर चर्चा की गई। जिससे गर्भवती महिला से उसके होने वाले बच्चे को कैंसर का स्थानांतरण या विस्तार रोका जा सके। जिन प्रमुख उपायों पर इस सेमिनार के दौरान विचार किया गया उसमें रिस्क रिड्यूजिंग सर्जरी, जेनेटिक टेस्ट और भ्रूण फ्रीजिंग व्यवस्था शामिल थे।

    जेनेटिक टेस्ट

    इसके तहत गर्भवती महिला ( जो किसी भी तरह के कैंसर से पीड़ित है)  की जांच की जाती है। यह देखा जाता है कि भ्रूण के अंदर भविष्य में कैंसर के लक्षण उत्पन्न होने की कोई आशंका तो नहीं है। इसे अनुवांशिक कैंसर टेस्ट भी कहा जाता है। उसके लिहाज से पहले से ही आने वाले बच्चे के इलाज की रूपरेखा तय करने में मदद मिलती है। कई बार संबंधित समस्या का समय रहते पता चलने पर उसका निवारण भी किया जा सकता है।  इस समय यह यह टेस्ट एम्स  और टाटा मेमोरियल इंस्टीट्यूट मुंबई में ही उपलब्ध है। देश के अन्य राज्यों के सरकारी अस्पताल में इसकी सुविधा नहीं है। लेकिन निजी अस्पतालों में इस तरह के टेस्ट होते हैं। डॉ नीरजा भाटला ने कहा कि इस टेस्ट के लिए संबंधित डॉक्टर से संपर्क करना होता है। जिसके बाद एक निश्चित तिथि दी जाती है। जब यह टेस्ट किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक का यह लाभ है कि बच्चे के कैंसर से पीड़ित होने की संभावना और उसके उपचार के लिए पहले से ही तैयारी का समय मिल जाता है। सही समय पर इलाज शुरू होने से कैंसर पर प्रभावी तरीके से नियंत्रण भी पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय सेमिनार के माध्यम से सभी विशेषज्ञों ने अपने अनुभव को साझा किया है। जिसे AIIMS आने वाले समय में प्रचारित और प्रसारित करेगा। जिससे अन्य डॉक्टरों को भी इस क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की जानकारी हो। जिससे वह अपने यहां भी इस पर कार्य कर पाए।

    रिस्क रिड्यजिंग सर्जरी

    यह एक ऐसी सर्जरी है। जिसमें शरीर के उस हिस्से को काट कर निकाल दिया जाता है। जिससे शरीर में कैंसर के फैलने की आशंका रहती है। हालांकि देश में इस सर्जरी को लेकर फिलहाल बहुत अधिक जागरूकता नहीं है। इसके अलावा इससे संबंधित कई तरह के संदेह भी इसकी राह में बाधा बने हुए हैं। एम्स के राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल डॉक्टरों का कहना था कि यह किसी भी अन्य सर्जरी की तरह एक आम ऑपरेशन है। ऐसा नहीं है कि इसमें किसी हिस्से को काटकर निकालने के बाद उसे वैसे ही छोड़ दिया जाता है। अगर किसी को ब्रेस्ट कैंसर है। अगर वह महिला कैंसर को फैलने से रोकने के उद्देश्य से इस सर्जरी को कराती है। ऐसे में पहली प्राथमिकता यह होती है कि संबंधित महिला के टिश्यू से ही नए ब्रेस्ट को बनाया जाए। ऐसा संभव नहीं होने पर ब्रेस्ट को इंप्लांट्स किया जाता है। यह देखने में पूरी तरह प्राकृतिक होता है। इससे शरीर पर कोई असर भी नहीं होता है। एम्स के मुताबिक पिछले 3 साल में इस तरह के करीब 40 ऑपरेशन किए गए हैं। जिसके बाद नए अंग इनप्लांट भी किए गए हैं। जो देखने में पूर्णता प्राकृतिक लगते हैं।

    शुक्राणु फ्रीजिंग

    डॉक्टरों ने कहा कि कैंसर के इलाज के दौरान दवाओं का कुछ प्रतिकूल असर भी होता है। इससे पुरुषों में शुक्राणु निल या कम होने की आशंका भी उत्पन्न हो जाती है। जिससे  भविष्य में उनके बच्चे उत्पन्न करने की क्षमता पर भी असर होता है। ऐसे में कई युवा यह चाहते हैं कि कैंसर के इलाज से पहले वह अपने शुक्राणु को सुरक्षित करा कर रख ले। इसे फ्रीजिंग भी कहते हैं। जब वह अपना इलाज करा लेते हैं। उसके बाद इसे भ्रूण में डालने का कार्य किया जाता है। जिससे उन्हें बच्चा मिल पाता है।