Anandi Bai Joshi
Photo Credit: wikipedia

    Loading

    नई दिल्ली. भारत में महिलाएं सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। राजनीति से लेकर खेल तक में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा व योग्यता का परिचय दिया है। लेकिन 18वीं शताब्दी में ऐसा बिलकुल नहीं था। स्त्री को सिर्फ बच्चा पैदा करने और घर की देखभाल करने के लिए ही जाना जाता था। शिक्षा से उनका कोई वास्ता नहीं था। लेकिन ऐसी कठिन परिस्थितियों में आनंदीबाई जोशी ने वह कारनामा कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

    आनंदीबाई जोशी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ी और विदेश से शिक्षा हासिल कर भारत की पहली डॉक्‍टर बनी। उनका जन्‍म 31 मार्च सन् 1865 में पुणे शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जब वह 9 साल की थी तभी उनकी शादी 25 साल गोपाल गोपालराव जोशी से हुई थी। इसके बाद 14 साल की उम्र में आनंदी मां और उनकी एकमात्र संतान की मृत्यु 10 दिनों में ही हो गई, जिससे उन्हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी। उनके पति गोपालराव ने भी उनको भरपूर सहयोग दिया और उनकी हौसला अफजाई की।

    18वीं शताब्दी में महिलाओं की शिक्षा दूभर थी। जब आनंदीबाई ने डॉक्टर बनने का निर्णय लिया था, उनकी समाज में काफी आलोचना हुई थी कि एक शादीशुदा हिंदू स्‍त्री विदेश (पेनिसिल्‍वेनिया) जाकर डॉक्‍टरी की पढ़ाई करे। लेकिन आनंदीबाई एक दृढ़निश्‍चयी महिला थीं और उन्‍होंने आलोचनाओं की तनिक भी परवाह नहीं की। उनके पति गोपालराव ने उन्‍हें मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलाकर आगे की पढ़ाई कराई, जिसके बाद वे कलकत्ता चली गई। यहां उन्‍होंने संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ना और बोलना सीखा।

    आनंदीबाई के पति ने उन्हें आगे मेडिकल का शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने 1880 में एक प्रसिद्ध अमेरिकी मिशनरी, रॉयल वाइल्डर को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी की रुचि को देखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका में चिकित्सा का अध्ययन की जानकारी मांगी, जहां से जानकारी मिलने पर वो अमेरिका चली गई, उन्‍होंने पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा कार्यक्रम में एडिमशन लिया।

    आनंदीबाई ने सन् 1886 में 19 साल की उम्र में अपने सपने को साकार रूप दिया और एमडी की डिग्री हासिल कर ली। वह एमडी की डिग्री पाने वाली भारत की पहली महिला डॉक्‍टर बनीं, उसी साल आनंदीबाई भारत लौट आईं, डॉक्टर बन कर देश लौटी आनंदी का भव्य स्वागत किया गया था। बाद में उन्हें कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक की नियुक्ति मिली। 

    जब जोशी युगल कलकत्ता में थे, आनंदीबाई का स्वास्थ्य कमजोर हो रहा था। वह कमजोरी, निरंतर सिरदर्द, कभी-कभी बुखार और कभी-कभी सांस की वजह से पीड़ित थीं। भारत की पहली महिला डॉक्टर बनकर कीर्तिमान रचने वाली आनंदीबाई अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस शुरू करने से पहले ही टीबी की बीमारी का शिकार हो गईं। इसी कारण 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई का 22 साल की उम्र निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर पूरे भारत में शोक व्यक्त किया गया।