एस. हनुमंत राव, वरिष्ठ पत्रकार
तेलंगाना: 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ओबीसी वोटरों को रिझाने की कवायद तेज़ हो गई है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी जातिगत सर्वेक्षण की मांग कर ओबीसी वोटरों को गोलबंदी की कोशिश कर रहे हैं और पिछले दो लोकसभा चुनावों में ओबीसी वोटरों के बीच अपनी पैठ बना चुकी बीजेपी भी इसे लेकर आक्रामक रणनीति बनाने में लगी है.
11 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के सिकंदराबाद में मादिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति (एमआरपीएस) द्वारा आयोजित एक रैली को संबोधित किया. मंदा कृष्णा मादिगा की अध्यक्षता वाली एमआरपीएस 1994 से अनुसूचित जाति (एससी) के उप-वर्गीकरण के लिए आंदोलन कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मादिगाओं को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण लाभ का उचित हिस्सा मिले. उनकी शिकायत यह रही है कि माला, जो नंबरों में भले ही कम हैं लेकिन एससी आरक्षण का बड़ा हिस्सा हथिया रही हैं. तेलंगाना में एससी के लिए 15 फीसदी आरक्षण है.
मोदी ने कहा,“भाजपा मादिगा समुदाय के साथ हुए अन्याय को समझती है. हम इस अन्याय को यथाशीघ्र समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. आपके सशक्तिकरण को हर तरह से सक्षम बनाने के लिए हम जल्द ही एक समिति का गठन करेंगे. आप और हम जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ी न्यायिक प्रक्रिया चल रही है. मैं आपकी लड़ाई को न्याय की लड़ाई मानता हूं. बाबा साहेब अंबेडकर ने जो संविधान दिया, उसने मुझे न्याय की जिम्मेदारी सौंपी है.”
अगर प्रधानमंत्री के बयान को बारीकी से समझे तो वो ये कह रहे हैं की मादिगा लोगों के साथ “अन्याय” हो रहा है और उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. अगर हम इस लॉजिक के मूल में जाएं, तो मोदी वही कह रहे हैं जो कि राहुल गांधी कहते हैं “जितनी आबादी, उतना हक़.”
इन सारी कवायदों से यह ये लगभग साफ हो गया है कि ‘इंडिया और ‘एनडीए’ दोनों गठबंधन की पार्टियों के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी कार्ड बेहद अहम होगा.
देश की आबादी में ओबीसी जातियों के लोग 42 से 52 फीसदी हैं. इसलिए वोटरों के इस विशाल आधार वाले समुदाय का किसी भी गठबंधन की ओर झुकना उसकी जीत की गारंटी है. पिछले दो चुनावों के दौरान बीजेपी को मिली बड़ी जीत में ओबीसी वोटरों की अहम भूमिका रही है.
लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी ओबीसी वोटरों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही है. रसूख़ वाली ओबीसी जातियों की तुलना में कमजोर ओबीसी जातियों के वोट बीजेपी को ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं.
ये जातियां अब तक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की समर्थक रही हैं. लेकिन पिछले दो चुनावों में इनका बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ दिखा है. लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी मतदाता राहुल गांधी की और कांग्रेस पार्टी की बात पर भरोसा करेगा? और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे को लेकर मुश्किल महसूस कर रहे हैं?
क्योंकि सिकंदराबाद की रैली में मोदी की टिप्पणी का राष्ट्रीय राजनीति के लिए क्या मतलब है?
तेलंगाना की आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक पिछड़ा वर्ग हैं. भाजपा ने दक्षिणी राज्य में सत्ता में आने पर उनकी कम्यूनिटी का एक मुख्यमंत्री लाने का वादा किया है. राज्य भाजपा प्रमुख के पद से हटाए गए बंदी संजय कुमार से लेकर, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के दलबदलू और बंदी के आलोचक ईटेला राजेंदर और भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य के लक्ष्मण तक – भाजपा के अधिकांश शीर्ष नेता तेलंगाना ओबीसी समुदाय से हैं. यह और बात है कि पार्टी ने जुलाई में ओबीसी नेता बंदी संजय की जगह ऊंची जाति के जी किशन रेड्डी को राज्य भाजपा प्रमुख बना दिया.
2011 की जनगणना के दौरान तेलंगाना आंध्र प्रदेश का हिस्सा था, जिससे अविभाजित राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 16 प्रतिशत थी. हालांकि, मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव ने कहा है कि 2015 में किए गए एक व्यापक घरेलू सर्वेक्षण के अनुसार तेलंगाना में एससी आबादी 17.53 प्रतिशत थी. इसलिए, उन्होंने मांग की कि एससी के लिए आरक्षण कोटा संशोधित किया जाना चाहिए. अनुमान है कि तेलंगाना में अनुसूचित जाति में मादिगा लोगों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है, और यही कारण है कि भाजपा बीसी और मादिगा लोगों के लिए यह पिच बना रही है.
मोदी अच्छी तरह से जानते हैं कि इसी गणित में उनका 2014 के बाद अजय वाली छवि थी। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे बताते हैं कि 1996 के लोकसभा चुनाव में रसूख वाली ओबीसी जातियों में से 22 फीसदी ने बीजेपी को वोट दिया. जबकि सामाजिक रूप से उनसे कमजोर ओबीसी जातियों में से 17 फीसदी ने बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन 2014 में तस्वीर बदल गई. इस चुनाव में रसूख वाली ओबीसी जातियों के 30 फीसदी वोटरों ने बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन गैर रसूखदार ओबीसी जातियों के 43 वोटरों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था.
2019 के चुनाव में बीजेपी के पक्ष में ओबीसी जातियों का समर्थन ओर बढ़ा. इस चुनाव में रसूख वाली ओबीसी जातियों के 40 फीसदी वोटरों ने बीजेपी को वोट दिया. वहीं कमजोर ओबीसी जातियों के 48 फीसदी वोटरों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था. 2014 और 2019 के चुनाव को देखें तो ओबीसी का वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ है. लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल से ये मांग हो रही है कि ओबीसी की गिनती होनी चाहिए. इसलिए बीजेपी अब रक्षात्मक मुद्रा में आ गई है।
इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दूसरे नजरिए से वही बोलते नजर आ रहे हैं जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी बोल रहे हैं। क्योंकि तेलंगाना के संदर्भ में मदीगाओं के लिए मोदी की वकालत से आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मदद मिल भी सकती है और नहीं भी मिली तो भी पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में बेहतर लाभ की उम्मीद कर रही है. 2019 में, भाजपा ने 19 प्रतिशत से अधिक वोटशेयर के साथ 17 लोकसभा सीटों में से 4 सीटें हासिल कीं
“अन्याय को समाप्त करने” के लिए संख्या बल के आधार पर आरक्षण लाभ की मादिगा की मांग पर विचार करने के लिए एक समिति का वादा करके, मोदी ने जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण के विचार को — और इस हिसाब से जाति जनगणना को नहीं– विश्वसनीयता प्रदान की है. जाति जनगणना के पीछे मुख्य राजनीतिक विचार आरक्षण लाभ और संसाधनों के आवंटन के लिए संख्यात्मक आधार है. मोदी ने पहले गांधी के “जितनी आबादी, उतना हक” नारे का मजाक बनाते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेता अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम करना चाहते हैं.
2018 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 की जनगणना में ओबीसी की गणना करने का फैसला किया था. एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से निर्णय को सार्वजनिक किया गया. गृह मंत्रालय की 31 अगस्त 2018 की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “पहली बार ओबीसी पर डेटा एकत्र करने की परिकल्पना की गई है.” यह केंद्र द्वारा ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए रोहिणी आयोग की स्थापना के एक साल बाद आया था.
बाद में सरकार ने अपना रुख बदल लिया. इसने नीति के तहत जाति जनगणना कराने से इनकार कर दिया, यहां तक कि वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सदस्य हैं, सरकार को अपने पुराने वादे की याद दिलाती रहीं.
यही वह समय था जब मोदी ने जाति जनगणना के बारे में बात करके “भारत को जाति के आधार पर विभाजित करने” के लिए विपक्षी दलों की आलोचना शुरू कर दी. पार्टी एक बार फिर अपना रुख बदलती नजर आ रही है. छत्तीसगढ़ के रायपुर में भाजपा के घोषणापत्र के लॉन्च के अवसर पर प्रेस से बात करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि उनकी पार्टी कभी भी जाति जनगणना के विरोध में नहीं थी और ऐसे निर्णय उचित समय पर “सावधानीपूर्वक विचार” के बाद लिए जाने चाहिए.
‘जितनी आबादी, उतना हक’ और जाति जनगणना पर भाजपा और मोदी का क्या यह मास्टर स्ट्रोक साबित होगा..?