नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र (Maharashtra) के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों (Lok Sabha constituencies) में उत्तर महाराष्ट्र में 8 सीटें हैं। इन आठ सीटों में से नासिक (Nashik) सीट अहम मानी जा रही है। नासिक लोकसभा (Lok Sabha Elections 2024) क्षेत्र के वर्तमान सांसद शिव सेना (Shiv Sena) शिंदे गुट (Shinde Group) के हेमंत गोडसे (Hemant Godse) हैं। मुख्यमंत्री के बेटे श्रीकांत शिंदे (Shrikant Shinde) ने उन्हें दोबारा सांसद का टिकट देने का ऐलान किया है। वहीं बीजेपी (BJP) गुट में देखा जा सकता है कि हेमंत गोडसे को लेकर नाराजगी है। नासिक का महत्व कई मायनों में है। नासिक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक, कृषि, पर्यटन आदि सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। उत्तर महाराष्ट्र में राजनीतिक वर्चस्व के लिए नासिक लोकसभा क्षेत्र जीतना जरूरी माना जाता है। इस संसदीय क्षेत्र का आज तक क्या इतिहास रहा है? इस क्षेत्र पर किसका दबदबा रहा है? किसका गढ़ रहा है? आइए सब कुछ विस्तार से जानते हैं…
हर 5 साल में बदला सांसद
वह नासिक लोकसभा क्षेत्र पर प्रभुत्व बनाकर उत्तर महाराष्ट्र पर प्रभुत्व हासिल करना चाहता था। यह गणित सभी राजनीतिक दलों को भलीभांति पता है। इसलिए हर चुनाव में पार्टियां नासिक के गढ़ पर कब्ज़ा करने की कोशिश करती हैं। राजनीतिक दल इस संसदीय क्षेत्र के महत्व को जानते हैं। इस क्षेत्र के मतदाता भी उतने ही समझदार हैं। क्योंकि यहां के मतदाताओं ने ज्यादातर नए उम्मीदवार या पार्टी को चुना है। पहले यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ था। लेकिन 1977 के बाद उन्हें शिवसेना से चुनौती मिली। देखा गया है कि कभी-कभी एनसीपी ने भी यहां परचम लहराया है।
इस निर्वाचन क्षेत्र की खासियत किसी एक पार्टी या एक नेता का आंख मूंदकर अनुसरण करना है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को यह पसंद नहीं है। केवल दो सांसदों – 1967 और 1971 में भानुदास कवाडे और फिर 2014 और 2019 में हेमंत गोडसे को लगातार एक से अधिक कार्यकाल का सम्मान मिला है। इसके अलावा कोई भी लगातार दो बार सांसद नहीं रह सका।
1952 से लेकर 1984 कांग्रेस का दबदबा
1952 का पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के गोविंद हरि देशपांडे ने जीता। तब से लेकर 1984 में आठवीं लोकसभा तक लोकसभा कांग्रेस के हाथ में रही। 1957 में ही शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के भाऊराव कृष्णराव गायकवाड़ ने जीत हासिल की थी। तो 1977 में शेकाप के वी. जी. हांडे सांसद बन गए थे। इसीलिए नासिक को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। इसके बाद 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव में शिवसेना के राजाराम गोडसे जीते और बारहवीं लोकसभा चुनाव में फिर यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। 1998 में नासिक की जनता ने माधवराव पाटिल को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुना। चौदहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव यानी 2004 और 2009 में यहां से क्रमश: एनसीपी उम्मीदवार देवीदास पिंगले और समीर भुजबल चुने गए। अब 2014 के बाद से लगातार दो बार शिवसेना के हेमंत गोडसे निर्वाचित हुए हैं।
इस बार हेमंत गोडसे को टिकट!
कुल मिलाकर, पहली लोकसभा से लेकर 2019 के सत्रहवीं लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के उम्मीदवार 8 बार, शिवसेना के 4 बार, एनसीपी के 2 बार, बीजेपी, शेकाप, अनुसूचित जाति संघ के उम्मीदवार एक-एक बार निर्वाचित हुए हैं। मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे ने 2009 में भी लोकसभा चुनाव लड़ा था। उस वक्त उन्होंने मनसे से उम्मीदवारी ली थी। उन्हें छगन भुजबल के बेटे समीर भुजबल ने हराया था। फिर 2014 में हेमंत गोडसे ने छगन भुजबल को हराकर सांसदी हासिल की। 2019 में समीर भुजबल ने दोबारा चुनाव लड़ा लेकिन इस बार हेमंत गोडसे ने उन्हें हरा दिया और संसद पहुंच गए। यानी कि हेमंत गोडसे दो बार नासिक लोकसभा सीट से अपने पिता भुजबल को हराकर सांसद बन चुके हैं। लेकिन इस बार उनका नाम कुछ खास लोकप्रिय होता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे ने नासिक से उम्मीदवार के रूप में हेमंत गोडसे के नाम की घोषणा की है।
नासिक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए, इस निर्वाचन क्षेत्र में नासिक पूर्व, मध्य और पश्चिम के साथ-साथ सिन्नर, देवलाली और इगतपुरी विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। वर्तमान राजनीतिक ताकत को देखते हुए, इनमें से तीन निर्वाचन क्षेत्रों में वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं, जबकि दो निर्वाचन क्षेत्रों में राकांपा और एक पर कांग्रेस के विधायक हैं।
महागठबंधन में किसे मिलेगी सीट
महाराष्ट्र में 2019 विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में माविया का प्रयोग किया गया था। यह प्रदेश की राजनीति में बड़ा झटका था। शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया। लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी। क्योंकि उसके बाद शिवसेना में गुटबाजी और एनसीपी में फूट ने भी महाराष्ट्र की राजनीति को हिलाकर रख दिया। इसे लेकर राज्य के लगभग हर जिले की राजनीति बदल गयी है। नासिक कोई अपवाद नहीं है। मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे एकनाथ शिंदे के ग्रुप में हैं। लेकिन जिस एनसीपी को उन्होंने पिछली बार हराया था, वह भी अजित पवार के नेतृत्व में उनके साथ सत्ता में है। फिर यह मुद्दा भी है कि महागठबंधन में यह सीट किसके खाते में जाएगी।
शिवसेना NCP दोनों दावेदार
चर्चा है कि शिवसेना के मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे ने टिकट मिलने का भरोसा लेकर तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये दोनों पार्टियां महागठबंधन में सीटों की दावेदार हैं। इस नए महागठबंधन की नींव तैयार करने वाली बीजेपी भी इस सीट पर दावेदार है। दूसरे पक्ष पर विचार करते हुए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि महाविकास अघाड़ी उम्मीदवारी को लेकर कैसे निर्णय लेगी, उनके सामने उम्मीदवारी के लिए क्या विकल्प हैं। ठाकरे समूह के विजय करंजकर और शरद पवार समूह के गोकुल पिंगले ने भी एक-दूसरे के खिलाफ जुर्माना लगाया है। साथ ही शांतिगिरी महाराज का नाम भी सामने आया है। अगर उन्हें महायुति से नामांकन नहीं मिला तो संभावना है कि वे महाविकास अघाड़ी से भी नामांकन मांगेंगे। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों के कारण नासिक लोकसभा क्षेत्र में कौन लड़ेगा इसे लेकर बड़ी असमंजस की स्थिति बन गई है।चल रही चर्चाओं में नासिक सीट के लिए छगन भुजबल का नाम भी चल रहा है। ऐसे में छगन भुजबल को महायुति से टिकट मिलने की संभावना है।
नासिक का पूरे देश में धार्मिक महत्व
नासिक का न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश में धार्मिक महत्व है। यहां हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, रामायण से जुड़ाव और हाल ही में राम मंदिर के उद्घाटन के कारण, यह संभव है कि नासिक लोकसभा क्षेत्र में धार्मिक कारक सबसे महत्वपूर्ण होगा।
कब्जा करने कि कोशिश करेगी BJP
देशभर में धार्मिक स्थलों पर बीजेपी बेहद स्पष्ट रुख अपना रही है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर बीजेपी ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों को राजनीति से जोड़कर उन पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रही है। नासिक भी इससे अछूता नहीं है। इसलिए बीजेपी इस सीट पर जोर लगाएगी। कुछ दिन पहले नासिक के कंठानंद महाराज भी बीजेपी में शामिल हुए थे। ऐसा लग रहा है कि शांतिगिरी महाराज भी इस बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि वह किसी पार्टी की और से चुनाव लड़ेंगे या निर्दलीय उम्मीदवार होंगे। फिलहाल ऐसा लग रहा है कि राम मंदिर के उद्घाटन के बाद बने धार्मिक माहौल का फायदा उठाने के लिए नासिक लोकसभा क्षेत्र में समीकरण बनेंगे।
चुनाव को ये मुद्दे भी कर सकते हैं प्रभावित
इन महत्वपूर्ण धार्मिक मुद्दों के अलावा, निर्वाचन क्षेत्र में निश्चित रूप से कुछ कृषि और अन्य मुद्दे हैं, लेकिन मुख्य रूप से शहरी निर्वाचन क्षेत्र होने के कारण, उन मुद्दों का प्रभाव कम होने की संभावना कम है। कुल मिलाकर इस चुनाव में एक ही पार्टी के दो गुट, अन्य छोटे दल, नाराज-बागी और निर्दलीय उम्मीदवारों की भारी भीड़ हो सकती है। यदि ऐसा होता है, तो विजयी उम्मीदवार का निर्धारण केवल इस बात से किया जा सकता है कि वोट कैसे विभाजित होंगे।