Violence breaks out in Imphal
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इंफाल: मणिपुर में जारी हिंसा और लड़ाई को करीब एक साल होने वाला है। राज्य और केंद्र की बीजेपी सरकार अब तक इसे नहीं रोक पाई। इस हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। ऐसे में मणिपुर में लोकसभा चुनाव ने दस्तक दी है। मणिपुर में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने में दो सप्ताह से भी कम समय बचा है, लेकिन न तो राज्य में राजनीतिक दलों के पोस्टर दिख रहे हैं, न बड़ी रैलियां हो रही हैं और न ही नेताओं की आवाजाही दिख रही है। जलते हुए मणिपुर में जाने से केंद्र की सत्ताधीश और मुख्य विपक्षी दल भी जाने से कतरा रहे है।

मणिपुर जानें से परहेज कर रहे दिग्गज नेता

उल्लेखनीय है कि मणिपुर में 19 और 26 अप्रैल को दो चरण में होने वाले लोकसभा चुनावों ने विस्थापित आबादी की मतदान व्यवस्था पर ध्यान आकर्षित किया है। राहत शिविरों में मतदान की व्यवस्था की जा रही है। हालांकि उम्मीदवारों ने अभी इन राहत शिविरों का दौरा नहीं किया है। मतदान होने में दो सप्ताह से भी कम समय बचा है, लेकिन न तो राज्य में राजनीतिक दलों के पोस्टर दिख रहे हैं, न बड़ी रैलियां हो रही हैं और न ही नेताओं की आवाजाही दिख रही है। जलते हुए मणिपुर में जाने से केंद्र की सत्ताधीश और मुख्य विपक्षी दल भी जाने से कतरा रहे है। एक ओर जहां भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसी प्रमुख हस्तियों को स्टार प्रचारकों के रूप में सूचीबद्ध किया है, वहीं कांग्रेस के प्रचारकों की सूची में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं। हालांकि किसी ने भी अब तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है।

मणिपुर में चुनाव के नाम पर केवल स्थानीय निर्वाचन अधिकारियों के लगाए कुछ होर्डिंग दिख रहे हैं, जिनके जरिए लोगों से मताधिकार के इस्तेमाल का अनुरोध किया गया है। मणिपुर निर्वाचन आयोग ने कहा है कि प्रचार गतिविधियों पर कोई आधिकारिक रोक नहीं है, हालांकि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि राज्य में नाजुक स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए कम प्रचार कर रहे हैं।

मीडिया खबरों ने अनुसार, मणिपुर के आखिरी गांव मोरे में रहने वाले केशव ने भास्कर से बात करते हुए कहा कि राज्य में जारी हिंसा को एक साल होने वाला है। सरकार इसे नहीं रोक पाई। हम लोग डरकर जीते हैं। परिवार को साथ नहीं रख पा रहे। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। बिजनेस ठप है। कमाई की बात तो क्या करूं। हम लोग 10 साल पीछे चले गए हैं। हर हाल में जी लेंगे, बस सरकार शांति करवा दे।

11 महीने से जारी हिंसा

आपको पता हो कि मणिपुर में बीते साल 3 मई 2023 से मैतेई और कुकी के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी है। 11 महीने से चल रही ये लड़ाई आज तक खत्म नहीं हुई है। इस दौरान जलते राज्य में मर्डर, रेप, गैंगरेप की सैकड़ों घटनाएं हो चुकीं। इस हिंसा में अब तक 219 लोग मारे गए। 4 हजार से ज्यादा घर जला दिए गए। 70 हजार लोगों को बेघर हो गए। आंतरिक रूप से विस्थापित लोग फिलहाल पांच घाटी जिलों और तीन पहाड़ी जिलों के राहत केंद्रों में रह रहे हैं। हालत ऐसी है कि लापता लोगों की अब तक लाशें मिल रही हैं।

क्या बोल रहे स्थानीय लोग

मीडिया से बात करते हुए मणिपुर के निवासी आर्मी में हवलदार रोमियो सिंह ने कहा कि PM मोदी दो बार असम आए। हाथी की सवारी की, लेकिन हमारे मणिपुर एक बार भी नहीं आए। मैं ज्यादा राजनीति नहीं जानता, सिर्फ अपनी ड्यूटी करता हूं। ये सब देखकर दुख होता है। मैं अपने परिवार से नहीं मिल पा रहा हूं। मेरा भाई पास के गांव में रहता है। हिंसा में उसका सब कुछ जल गया। अब सभी रिलीफ कैंप में हैं। मैं उससे मिलने तक नहीं जा पा रहा हूं।

उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने सीनियर को मां-बाप मानते हैं। मणिपुर में शांति बनाए रखने के लिए PM को कुछ तो बोलना चाहिए। वे लोग (कुकी-नगा) भी दुखी होंगे। उन्होंने भी अपने परिवार के लोगों को हिंसा में खोया होगा। रोमियो सिंह ने आगे यह भी कहा कि मैं तलवार लेकर सोता हूं। अगर हमला हुआ तो सुसाइड कर लूंगा, लेकिन उनके हाथों नहीं मरूंगा।

अब वोट के लिए मजबूर करेंगे

इंफाल के इमा मार्केट में एक महिला निर्मला ने कहा कि मणिपुर में अभी इलेक्शन कराना ठीक नहीं है। हिंसा शुरू हुई तो नेताओं ने हमें छोड़ दिया। हमारे PM अब तक कुछ नहीं बोले। उन्होंने यह भी कहा कि 11 महीने हो चुके हैं। PM एक बार नहीं आए। गुजरात में कोई हादसा होता है, तो PM तुरंत जाते हैं लेकिन मणिपुर नहीं आए। होम मिनिस्टर भी पिछले साल मई में आए थे। 15 दिन बाद फिर आने का कहा था, लेकिन न आए और न ही कुछ कहा। महिला ने आगे कहा कि हमारे लोग रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। उनकी इनकम का कोई सोर्स नहीं है। उनके लिए कोई इंतजाम नहीं है। कैंप में रह रहे लोगों को अब वोटिंग के लिए मजबूर किया जाएगा। गुजरात में कोई हादसा होता है, तो PM तुरंत जाते हैं, लेकिन मणिपुर नहीं आए।

दो बच्चों की मां और मैतेई बहुल क्वाकीथेम क्षेत्र में एक राहत शिविर में रह रहीं दीमा ने कहा, “पार्टियों के कुछ कार्यकर्ता एक या दो बार आए हैं लेकिन कोई उम्मीदवार नहीं आया। अगर वे आएंगे तो उन्हें पता चलेगा कि हम किस स्थिति में शिविरों में रह रहे हैं। राज्य में समाधान या शांति की कोई संभावना नहीं है।” इस बीच, कुकी समुदाय बहुल मोरेह और चुराचांदपुर जैसे क्षेत्रों में भी ऐसे ही हालात हैं। कुछ कुकी गुटों और सामाजिक समूहों ने चुनावों के बहिष्कार का भी आह्वान किया है। कारोबारी गतिविधियां शुरू होने और संस्थानों के खुलने से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में स्थिति सामान्य दिखने के बावजूद सुरक्षा बलों की व्यापक उपस्थिति लंबे समय से जारी तनाव और आबादी के सामने मौजूद चुनौतियों को उजागर करती है।

चुनाव प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं

मणिपुर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रदीप झा ने बताया, ”निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। आदर्श आचार संहिता के दायरे में आने वाली किसी भी चीज की अनुमति है।” मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए भाजपा के उम्मीदवार थौनाओजम बसंत कुमार सिंह, कांग्रेस के अंगोमचा बिमोल अकोइजम, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के महेश्वर थौनाओजम और मणिपुर पीपुल्स पार्टी (एमपीपी) समर्थित राजमुकर सोमेंद्रो सिंह अनोखे समाधान के साथ आगे आए हैं। वे गैर-पारंपरिक तरीके से मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं जिसमें उनके आवास या पार्टी कार्यालयों में बैठकें आयोजित करना और समर्थकों का घर-घर जाकर प्रचार करना शामिल है। घर-घर प्रचार के लिए स्वयंसेवकों की टीमों को तैनात करने वाले महेश्वर थौनाओजम ने कहा, “बेहतर होता अगर मैं जनसभाओं को संबोधित करता और रैलियां करता, लेकिन मैंने अभियान को सीमित रखने का फैसला किया है।” उन्होंने कहा, “मौजूदा स्थिति में मतदाता अपने वोट के महत्व को जानते हैं और सोच-समझकर चुनाव करेंगे।”

राज्य के निवर्तमान शिक्षा एवं कानून मंत्री बसंत कुमार सिंह इस बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह अपने आवास और पार्टी कार्यालय में छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं। इसी तरह, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अकोइजाम ज्यादातर अपने आवास पर लोगों से मिलते हैं। इंफाल में कांग्रेस कार्यालय पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा और अकोइजाम के समर्थन में पोस्टर लगे हुए हैं। भाजपा की मणिपुर इकाई की अध्यक्ष ए. शारदा देवी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”चुनाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन हम धूमधाम और दिखावा करके लोगों के घावों पर नमक नहीं छिड़क सकते। चुनाव भी एक त्योहार की तरह हैं लेकिन हम मौजूदा स्थिति के कारण त्योहार को जोर-शोर से नहीं मना सकते।” भाजपा नेता ने कहा, “लोग अपने घरों से दूर रह रहे हैं, हम चाहते हैं कि वे हम पर विश्वास करें, हालांकि हम प्रचार नहीं कर रहे हैं।”

राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि किसी भी तरह का जोरदार अभियान राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा, “हालांकि स्थिति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन किसी भी तरह का जोरदार अभियान राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है और कोई भी पार्टी यह जोखिम नहीं लेना चाहती है।”