Prakash javdekar
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नई दिल्ली. राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को ‘जल्लीकट्टू’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने सांस्कृतिक प्रथाओं को आयोजित करने की अनुमति देने का फैसला किया था।

न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीय के दौरान जावड़ेकर ने कहा, “मैं ‘जल्लीकट्टू’ पर आज के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता हूं क्योंकि जब मैं पर्यावरण मंत्री था, तो मोदी सरकार ने सांस्कृतिक प्रथाओं को आयोजित करने की अनुमति देने का फैसला किया था।”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के उन संशोधन कानूनों की वैधता बरकरार रखी, जिनके तहत क्रमश: सांडों पर काबू पाने से जुड़े खेल ‘जल्लीकट्टू’, बैलगाड़ी दौड़ और भैंसों की दौड़ से संबंधित खेल ‘कंबाला’ को मंजूरी दी गई थी।

उल्लेखनीय है कि ‘जल्‍लीकट्टू’ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है। वहीं कर्नाटक में नवंबर से मार्च के बीच आयोजित की जाने वाली ‘कंबाला’ दौड़ में हल से बंधी दो भैंसों और उनकी डोर थामने वाले व्यक्ति की अलग-अलग टीम एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल होती हैं।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2018 में शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा संदर्भित पांच सवालों का निस्तारण करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। इस पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे।

संविधान पीठ ने कहा, “तमिलनाडु संशोधन अधिनियम के संबंध में हमारा फैसला महाराष्ट्र और कर्नाटक के संशोधित अधिनियमों पर भी लागू होगा। हम तीनों संशोधन अधिनियमों को वैध कानून पाते हैं।” पीठ ने ‘जल्‍लीकट्टू’, बैलगाड़ी दौड़ और ‘कंबाला’ के आयोजन की अनुमति देने वाले तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कानूनों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति बोस ने कहा कि इन अधिनियमों, नियमों और अधिसूचनाओं में निहित कानून को अधिकारियों द्वारा सख्ती से लागू किया जाएगा। पीठ ने कहा, “हम विशेष रूप से निर्देश देते हैं कि जिला मजिस्ट्रेट/सक्षम प्राधिकारी नियमों/अधिसूचनाओं में संशोधन के बाद बनाए गए कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे।”

पीठ ने कहा, “तमिलनाडु संशोधन अधिनियम… भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची तीन की प्रविष्टि 17 के सार से संबंधित है।” पीठ ने कहा कि तमिलनाडु संशोधन अधिनियम संबंधित खेल में पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता को कम करता है। पीठ ने कहा कि ‘जल्लीकट्टू’ ऐसा खेल है, जिसमें मवेशी शामिल होते हैं। उसने कहा कि वह अदालत के सामने पेश की गई सामग्री के आधार पर इस बात को लेकर आश्वस्त है कि तमिलनाडु में कम से कम पिछली कुछ शताब्दियों से ‘जल्लीकट्टू’ का आयोजन किया जा रहा है।

पीठ ने कहा, “लेकिन, यह तमिल संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है या नहीं, इस बारे में जानने के लिए अधिक विस्तृत धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विश्लेषण किए जाने की जरूरत है, जो कि हमारी राय में एक ऐसा अभ्यास है, जिसे न्यायपालिका द्वारा नहीं किया जा सकता है।” उसने कहा, “यह सवाल बहस का मुद्दा है कि क्या तमिलनाडु संशोधन अधिनियम किसी विशेष राज्य की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए है, जिसका जवाब लोगों द्वारा चुने गए सदन में तलाशा जाना चाहिए।”

पीठ ने कहा, “चूंकि, विधायी अभ्यास पहले ही किया जा चुका है और ‘जल्लीकट्टू’ को तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा पाया गया है, इसलिए हम विधायिका के इस विचार के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे।” उसने कहा, “संशोधन को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है, लिहाजा हमें नहीं लगता कि राज्य के कानून में कोई खामी है।” (एजेंसी इनपुट के साथ)