Same-Sex Marriage

Loading

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मंगलवार को समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा। शीर्ष अदालत कल सुबह साढ़े दस बजे फैसला सुना सकता है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ यह फैसला सुनाएगी।

उल्लेखनीय है कि सर्वाच्च अदालत में दायर याचिकाओं में समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है। इससे पहले 18 अप्रैल को शुरू हुई सुनवाई को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक सुना था और 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मंगलवार को सुनाया जाएगा फैसला

पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि फैसला मंगलवार को सुनाया जाएगा और इसके मुताबिक जानकारी शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपडेट की जाएगी।

समलैंगिक विवाह को मिलनी चाहिए मंजूरी

इस मामले को लेकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था। इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाता। ऐसे में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलनी चाहिए।

केंद्र ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध

हालांकि, केंद्र सरकार ने इस बात का विरोध किया था और कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा “कार्रवाई का सही तरीका” नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी।

केंद्र ने अदालत से कहा था कि यह शहरी सोच है, इसकी मांग बड़े शहरों में रहने वाले कुछ अभिजात्य (Elite) लोगों की है। केंद्र ने कहा था, ”समलैंगिक शादी को कानूनी दर्जा देने का असर सब पर पड़ेगा।” इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार के पास कोई ऐसा डाटा नहीं है जो यह बताए कि सेम सेक्स मैरिज की मांग सिर्फ शहरी वर्ग तक ही सीमित है।

 7 राज्यों इसका विरोध किया

केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सात राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं और राजस्थान, आंध्र प्रदेश तथा असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है। शीर्ष अदालत ने मामले पर सुनवाई 18 अप्रैल को शुरू की थी।