सुखदेव थापर जयंती: आज ही के दिन सिर्फ 24 साल की उम्र में देश के लिए दी थी कुर्बानी; पढ़ें इस क्रांतिकारी से जुड़ी खास बातें

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    Shaheed Diwas 2022: देश को आजादी दिलाने वाले क्रांतिकारियों की जब भी बात होती है उसनें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar) का नाम सभी के जुबां पर पहले आता है। भगत सिंह की मूर्ति को दो लोगों की मूर्तियों से घिरा हुआ देखा जाता है। जिसमे सुखदेव और राजगुरु होते है। वर्ष 1931 की 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देश की आजादी के लिए कुर्बान हो गए थे। इसी कड़ी में हम आपको बता रहे हैं सुखदेव से जुड़ी खास बातें-

    ज्ञात हो कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था। कहा जाता है कि इन तीनों लोगों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी लेकिन अंग्रेज सरकार डर गई कि कोई फसाद न हो जाए। यही कारण है कि इन्हें एक दिन पहले ही बगैर किसी को खबर किए रातोंरात फांसी दे दी गई थी। 

    गौर हो कि सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना में हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल थापर था। जबकि माता का नाम रल्ला देवी था जो धार्मिक विचारों वाली थी। सुखदेव जब सिर्फ तीन साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था। उनका पालन पोषण इनके पिता के बड़े भाई ने किया था जो समाज सेवा के साथ देशभक्ति के कामों में आगे रहते थे। इसलिए इसका सीधा प्रभाव सुखदेव पर पड़ा। उन्होंने बखूबी युवाओं में देशभक्ति का जस्बा भरने का काम किया और क्रांतिकारी गतिविधियों ने एक्टिव होकर हिस्सा लिया। 

    उल्लेखनीय है कि सुखदेव महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय से बहुत प्रभावित थे। पंजाब में जब लाठीचार्ज हुआ था और लाला लाजपत राय के निधन की खबर सामने आई तो सुखदेव बहुत आहत हो गए जिसके बाद उन्होंने अपने मित्रों भगतसिंह, राजगुरू के साथ मिलकर इसका बदला लेने की ठान ली। फिर इन लोगों योजना बनाकर 1928 में अंग्रेजी हुकूमत के एक पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स को मार डाला। इस वाकये ने जहां ब्रिटिश साम्राज्य की नीव हिला दी वहीं भारत में इन क्रांतिकारियों के जस्बे की हर तरफ चर्चा होने लगी। फिर गिरफ्तारी के बाद 23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को लाहौर के जेल में फांसी दी गई।