Supreme Court on shiv Sena

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    नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट से कहा कि सदन का अध्यक्ष दलबदल-रोधी कानून के तहत दल-बदल से जुड़े मामलों में न्यायाधिकरण की तरह काम करता है और सवाल किया कि कितनी बार राजनीतिक दलों ने संसद में इस पर विचार-विमर्श किया है कि यह व्यवस्था काम नहीं कर रही है।

    अदालत ने किहोतो होलोहोन बनाम जचिल्हू एवं अन्य के मामले में 1992 में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया और कहा कि सांसदों ने फैसला किया है कि वह (अध्यक्ष) संविधान की दसवीं अनुसूची (दलबदल-रोधी कानून) के तहत न्यायाधिकरण होंगे और इस अदालत ने इसे बरकरार रखा है।

    ठाकरे गुट ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के 40 विधायकों के पास 10वीं अनुसूची के तहत कोई राहत नहीं है और अगर अदालत न्यायिक आदेश से दल-बदल को बरकरार रखती है, तो इसके देश के लिए दूरगामी परिणाम होंगे।

    प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने ठाकरे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि उच्चतम न्यायालय केवल कानून की व्याख्या कर रहा है और जब तक कोई संविधान संशोधन नहीं होता है, तब तक सदन के अध्यक्ष की न्यायाधिकरण के रूप में स्थिति को सीधी चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    पीठ ने कहा, ‘‘वे विधायक और सांसद हैं, जिन्होंने फैसला किया है कि अध्यक्ष, न्यायाधिकरण होगा। यह अदालत केवल कानून की व्याख्या कर रही है। जब तक संविधान पीठ का फैसला मान्य है, हम मानेंगे कि 10वीं अनुसूची के तहत सदन का अध्यक्ष, न्यायाधिकरण है। अदालत ने कहा, ‘‘क्या आप बता सकते हैं कि दलों ने कितनी बार बैठकर फैसला किया है कि यह व्यवस्था काम नहीं कर रही है?” (एजेंसी)