covishield
'कॉविशील्ड' से कितना है रिस्क

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नई दिल्ली: जहाँ एक तरफ दवा कंपनी ‘एस्ट्राजेनेका’ ने ब्रिटिश कोर्ट में जब से बताया है कि, उसकी कोविड वैक्सीन ‘थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया’ सिंड्रोम (TTS) का कारण बन सकती है, जिससे खून का थक्का जमता है। तब से ही कईयों की नींद उडी हुई है। गौरतलब है कि, भारत में इस कंपनी की ‘कोविशील्ड’ नाम के इंजेक्शन के 170 करोड़ डोज लगे हैं।

93% लोगों को लगी ‘कॉविशील्ड
इस तरह देखा जाए तो भारत में 93% लोगों को कोरोना का टीका लगाया गया है। वहीं कोविड वैक्सीन को मॉनिटर करने वाली ऐप Cowin की डेटा के अनुसार AEFI के मामले 0।007% हैं। इन डोजेज में 1 अरब 70 करोड़ डोजेज अकेले कॉविशील्ड के लगे हैं। वहीं, पूरी दुनिया में ‘एस्ट्रेजनेका’ के 2 अरब 50 करोड़ से ज़्यादा डोजेज लगाए गए हैं।

लेकिन फिर साल 2021 में ही यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने 222 लोगों में एस्ट्रेजनेका की वजह से ब्लड क्लोटिंग की बात कही थी। मसलन उस वक्त के हिस्साब को देखा जाए तो लाख में 1 को खतरा था। वो भी यूरोपीय देशों में। हालांकि भारत की जानकारी में भी ब्लड क्लोटिंग की बात कही गई थी और नजर और निगरानी इस पर रखी गई, लेकिन फायदा का आंकड़ा बहुत बड़ा था और नुकसान बहुत कम या नगण्य।

कोरोना के टीके लगाने के बाद कब तक हो सकती है परेशानी?

मेडिकल जर्नल के अनुसार किसी भी टीके के लगने के बाद AEFI यानी After Events Following Immunization को जरुर से चेक किया जाता है। ठीक ठीक ऐसे ही भारत सरकार ने कोरोना के टीके लगने के दौरान लंबे वक्त तक इसकी बाकायदा मॉनिटरिंग भी की। फिर इस पर नजर के लिए पोर्टल और कमिटी भी बनी। समय समय पर इसकी जांच हुई।