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    नई दिल्ली. देश में 5जी तकनीक लांच हो गई है। सरकार ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चैन्नई सहित आठ शहरों में इस तकनीक के शुरू होने का ऐलान कर दिया है। हालांकि इस समय यह बहस भी हो रही है कि सरकार ने ऐलान भले कर दिया है। लेकिन वास्तविक रूप से 5जी तकनीक नवंबर—दिसंबर से पहले मोबाइल फोन पर उपलब्ध नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि मोबाइल कंपनियां फिलहाल इससे जुड़ी तकनीक अपग्रेड—उच्चीकरण का कार्य कर रही है। साथ ही इसके लिए नए टॉवर लगाने की प्रक्रिया को भी गति दे रही है।

    यह कहा जा रहा है कि 3जी और 4जी की तुलना में 5जी टॉवर में ईधन की अधिक खपत होगी। जिससे सरकार पर तेल आयात का दबाव और बढ़ेगा। ऐसे में सरकार सौर उर्जा टॉवर की व्यवहारिकता को देख रही है। देश में सबसे पहले राजस्थान में वीएनएल ने सौर उर्जा टॉवर से मोबाइल कनेक्शन देकर उसका पायलट प्रोजेक्ट किया था। हालांकि सरकारी एजेंसियों की उदासीनता और बड़े आपॅरेटरों की नई तकनीक अपनाने में झिझक की वजह से देशी स्तर पर तैयार सोलर या सौर उर्जा टॉवर प्रचलन में नहीं आ पाए।

    दूरसंचार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दूरसंचार मंत्री अश्वनी वैष्णव परंपरागत उर्जा की जगह गैर परंपरागत उर्जा या वैकल्पिक उर्जा को भी 5जी टॉवर संचालन में प्रयोग के हिमायती हैं। वह ढर्रे पर चलने के पक्षकार नहीं है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि भारत में सोलर टॉवर को बढ़ावा मिल सकता है। इसकी एक अन्य वजह यह भी है कि 5जी तकनीक आने के बाद टॉवर में खर्च होने वाले डीजल का खर्च दोगुना से अधिक होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

    ट्राई की वर्ष 2013 की एक रिपोर्ट ने कहा था कि उस समय करीब 5.85 लाख टॉवर साल में 5.12 बिलियन लीटर डीजल की खपत कर रहे थे। यह आकलन प्रति टॉवर प्रति दिन 8 घ्ंटे डीजल जनरेटर उपयोग पर आधारित था। उस समय एक टॉवर पर एक ही बीटीएस होता था। इस समय एक टॉवर पर कई बीटीएस होते हैं। जिससे खपत बढ़ना तय है। सरकार के लिहाज से इस समय देश में 7.3 लाख टॉवर हैं। जबकि 5जी तकनीक में अधिक प्रभावी टॉवर लगाने के साथ ही दो टॉवर के बीच दूरी भी कम करनी होगी।

    यह आकलन है कि 5जी के बेहतर संचालन के लिए देश में अतिरिक्त 4—5 लाख टॉवर की जरूरत होगी। जिससे डीजल की खपत दोगुना से ज्यादा होगी। इससे तेल का आयात बिल बढ़ेगा। जो सरकार के खर्च को भी प्रभावित करेगा। यही वजह है कि सौर या सोलर टॉवर को लेकर फिर से विचार किया जा रहा है। यह परंपरागत टॉवर की तुलना में कई गुणा सस्ती दर पर टॉवर का संचालन क सकता है। इसके अलावा इसे बहुत अधिक देखरेख की जरूरत नहीं होती है। इस अधिकारी ने माना कि देश में बिजली की पर्याप्त आपूर्ति की बात के बीच यह सच है कि टॉवर संचालन के लिए निर्बाध बिजली उपलब्ध नहीं है। जिसकी वजह से टॉवर संचालन में डीजल की खपत कम होने की जगह बढ़ती जा रही है। जो पर्यावरण के लिहाज से भी खतरनाक है।