नई दिल्ली: एक बड़ी खबर के अनुसार भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balkrishna) की और से मांगी गई माफी को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फटकारते हुए कहा कि, बिना शर्त माफी मांगने से हम बिलकुल भी संतुष्ट नहीं हैं। आज इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी रामदेव का बिना शर्त माफी का हलफनामा भी स्वीकार करने से भी इनकार किया।अदालत ने कहा कि हम अंधे नहीं हैं। हम माफीनामा स्वीकार करने से भी इनकार करते हैं।
जस्टिस अमानुल्ला ने कहा कि इन लोगों ने एक नहीं तीन-तीन बार हमारे आदेशों की अनदेखी की है। इन लोगों ने गलती को है इनको नतीजा भुगतना होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हम केंद्र सरकार के जवाब से भी बिल्कुल संतुष्ट नहीं है। अज जब पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष योग गुरु बाबा रामदेव का हलफनामा पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह विज्ञापन के मुद्दे पर बिना शर्त माफी मांगते हैं। इस पर गुस्से में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इसे जानबूझकर आदेश की अवहेलना मानते हैं। समाज को यह संदेश जाना चाहिए कि न्यायालय के आदेश का बिल्कुल भी उल्लंघन न हो।
Supreme Court observes that apology is only on paper after they (Ramdev and Acharya Balkrishna) were caught on wrong foot in court.
We don’t accept it (apology), we decline to accept this. We consider it a wilful, deliberate disobedience of the undertaking, says the Supreme…
— ANI (@ANI) April 10, 2024
इसके पहले 2 अप्रैल को, अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण को एक सप्ताह के भीतर उचित हलफनामा दाखिल करने का “अंतिम अवसर” दिया था और कहा था कि उनके द्वारा दायर की गई पहले की माफी “अधूरी और महज दिखावा” ही थी। पीठ ने इस बाबत भी फटकारते हुए कहा था कि, ”आपको अदालत को दिए गए वचन का पालन करना ही होगा और आपने हर बाधा को तोड़ दिया है।” कोर्ट ने तब साफ़ कहा था कि, वो उनकी माफ़ी को “नमक से भरी बोरी” की तरह ले रही है। पीठ ने पतंजलि, रामदेव और बालकृष्ण को भी चेतावनी भी दी थी कि वह “झूठी गवाही” पर ध्यान देगी क्योंकि कुछ दस्तावेज़, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे अन्य कागजात के साथ संलग्न थे, बाद में बनाए गए थे।
पीठ ने अपने औषधीय उत्पादों की प्रभावकारिता के बारे में पतंजलि के बड़े-बड़े दावों और कोविड महामारी के चरम दौर में एलोपैथी को बदनाम करने पर केंद्र की कथित निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया था और पूछा था कि सरकार ने क्यों अपनी ‘आंखें मूंदे’ रखीं? न्यायालय ने बालकृष्ण के इस बयान को भी खारिज कर दिया था कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री (जादुई उपचार) अधिनियम ‘‘पुराना” है और कहा कि पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापन ‘‘अधिनियम के दायरे” में हैं और अदालत से किए गए वादे का उल्लंघन करते हैं। शीर्ष अदालत इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाने वाली याचिका पर भी सुनवाई कर रही है।