पुण्यतिथि: निधन के एक महीने पहले से वीर सावरकर ने त्याग दिया था खाना! चुनी थी इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति

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    नई दिल्ली: आज यानी 26 फ़रवरी को प्रबल राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर (Veer Savarkar Death Anniversary) की पुण्यतिथि है। उनका पूरा नाम नाम विनायक दामोदर सावरकर है। अक्सर ऐसे प्रश्न किए जाते हैं कि सावरकर का निधन कैसे हुआ था। तो चलिए आज हम आपको उनके पुण्यतिथि पर बताते हैं उनकी मृत्यु से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जो अक्सर इंटरनेट पर खंगाली जाती हैं।   

    इच्छा मृत्यु 

    आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि वीर सावरकर ने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी। उनका निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था। उससे एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर बेहद कमजोर होता गया और फिर 82 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। दरअसल, कालापानी की सजा ने उनके स्वास्थ्य पर बेहद गहरा असर डाला था।

    आत्महत्या और आत्म-त्याग का अंतर    

    अपने मृत्यु से दो साल पहले यानी 1964 में सावरकर ने ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ नाम का एक लेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु के समर्थन को स्पष्ट किया था। उनका कहना था कि आत्महत्या और आत्म-त्याग के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। इसे लेकर सावरकर ने तर्क दिया था कि एक निराश इंसान आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त करता है, लेकिन जब किसी शख्स के जीवन का मिशन पूरा हो चुका हो और शरीर इतना कमजोर हो चुका हो कि जीना असंभव हो तो जीवन का अंत करने को स्व बलिदान कहा जाना चाहिए।

    खाना-पीना त्याग दवाइयां भी छोड़ी 

    सावरकर की आत्मकथा ‘मेरा आजीवन कारावास’ में उनके अंतिम दिनों में लिखे गए कई पत्र प्रकाशित हैं। इसी में से एक पत्र ऐसा भी है जिसमें उन्होंने कई तर्कों और अपने जीवन में आए क्षणों के जरिए इच्छा मृत्यु की व्याख्या भी की है। बताया जाता है कि सावरकर ने अपने आखिरी दिनों में दवाइयां लेनी बंद कर दी थीं। उन्होंने खाना पीना भी त्याग दिया था। इसलिए लोगों का कहना है कि उन्होंने खुद के लिए इच्छा मृत्यु चुनी थी।

    ये भी बात है प्रचलित 

    इसके अलावा सावरकर के बारे में ये भी कहा जाता है कि जब उन्हें इंग्लैंड से गिरफ्तार करके जहाज में ले जाया जा रहा था, तब वह समुद्र में कूद गए थे। जिसके बाद वह अगले दो दिन तक भूखे-प्यासे तैरते रहे और अंततः फ्रांस के समुद्र तट पर पहुंच गए। इसी वजह से उन्हें वीर की उपाधि दी गई थी। हालांकि, सावरकर ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा आजीवन कारावास’ के पेज 457 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि कई दिन तक समुद्र में तैरने की बात बहुत ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है। सावरकर ने अपनी किताब में लिखा, ‘एक सिपाही ने पूछा, आप कितने दिन और रात समुद्र में तैरते रहे थे। तब उन्होंने बताया था कि कैसे दिन-रात? बस 10 मिनट भी नहीं तैरा कि किनारा आ गया था।