5 दिसंबर को मनाया जाता है ‘विश्व मृदा दिवस’, जानिए इस विशेष दिन को मनाने का महत्व

Loading

सीमा कुमारी

मुंबई: ‘विश्व मृदा दिवस’ (World Soil Day) हर साल 5 दिसंबर को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को मिट्टी के महत्व के बारे में बताना है। मृदा को आम बोलचाल की भाषा में मिट्टी कहते हैं। भारत और मिट्टी का नाता एक अलग तरह की भावना को प्रदर्शित करता है।

भारतीयों के मिट्टी देश प्रेम से ताल्लुक रखता है। वहीं, मिट्टी को धरती मां से भी जोड़ा जाता है। लेकिन, दुनियाभर के लिए मृदा जीवन के लिए एक जरूरी प्राकृतिक संपदा है, जिस पर होने वाला आघात हर किसी के जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है। इस कारण मृदा संरक्षण और इसके टिकाऊ प्रबंधन के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मिट्टी के क्षरण के बारे में लोगों को बताना है।

मृदा प्रदूषण एक एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जिसमें मिट्टी की स्थिति में गिरावट आती है। मिट्टी इंसानों और सभी तरह के जीवों के लिए एक उन्नत स्त्रोत है। लेकिन उद्योगों के लिए पर्यावरण मानकों के प्रति लापरवाही और कृषि भूमि के कुप्रबंधन से मिट्टी की स्थिति खराब होती है। आइए जानें विश्व मृदा दिवस को मनाने की शुरुआत कब और क्यों हुई, इस दिन का इतिहास और महत्व।

इतिहास

2002 में अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (IUSS) द्वारा विश्व मृदा दिवस मनाने की सिफारिश की गई थी। एफएओ (FAO) सम्मेलन ने सर्वसम्मति से 20 दिसंबर 2013 में 68वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसे मनाने की आधिकारिक घोषणा की।

5 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है

खबरों के मुताबिक थाईलैंड के महाराजा स्व. एच.एम भूमिबोल अदुल्यादेज ने अपने कार्यकाल में उपजाऊ मिट्टी के बचाव के लिए काफी काम किया था। उनके इसी योगदान को देखते हुए हर साल उनके जन्मदिवस के अवसर पर यानी 5 दिसंबर को विश्व मिट्टी दिवस के रूप में समर्पित करते हुए उन्हें सम्मानित किया गया। इसके बाद से हर साल 5 दिसंबर को मिट्टी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।

विश्व मृदा दिवस को मनाने की मांग उठने के पीछे मिट्टी की जरूरत और उसके महत्व को समझना जरूरी है। इस दिन को मनाने की उद्देश्य मृदा संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना है। सभी स्थलीय जीवों के लिए मृदा खास महत्व रखती है। मिट्टी खनिज, भोजन और जीवन के लिए जरूरी चीजें प्रदान करती है। लेकिन कार्बनिक पदार्थ मिट्टी को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता में गिरावट आती है।