फोटो क्रेडिट - सोशल मीडिया
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जयपुर: भारत में त्योहार मनाने का अलग ही अंदाज होता है। हर राज्य में कुछ न कुछ अलग तरीके से त्योहारों को सेलिब्रेट करने की पुरानी परंपरा चली आ रही है। जैसे होली ही ले लीजिये, मथुरा में कई प्रकार से होली खेली जाती है। जिसमें लठ्ठमार होली और लड्डू की होली काफी लोकप्रिय है। वहीं कई जगहों पर अबीर, गुलाल या पानी में रंग को घोल के एक दूसरे को लगाते हैं। वहीं कुछ जगहों पर कीचड़ में जमाकर लोग लोटपोट करते हैं। लेकिन आपने कभी खून की होली खेली है। खून की होली नाम सुनकर मन में सवाल उठता है कि आखिर ये कौन सी होली है और कौन इसे खेलता है। तो चलिए जानते हैं.. 

यहां खेली जाती है खून की होली

राजस्थान का डूंगरपुर जिले में लोग खलेते हैं खून की होली। हर साल बड़ी संख्या में लोग डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव (Bhiluda Village) के रघुनाथजी मंदिर के पास होने वाली इस होली को देखने आते हैं। यहां रहने वाले बड़े ही जोश के साथ पत्थरों की राड़ की होली खलेते हैं। इस होली को खेलने वाले एक दूसरे पर रंग की बजाय पत्थरों की बारिश करते हैं। यूं कहें कि एक दूसरे को पत्थरों से मारते हैं तो गलत नहीं होगा। इस दौरान कई लोग घायल हो जाते हैं और उनका सिर तक फुट जाता है लेकिन उसके बाद भी न तो उत्साह कम होता है न ही जोश में कोई कमी आती है। 

खून बहना मानते हैं शुभ

 राजस्थान के डूंगरपुर के भीलूडा गांव (Bhiluda Village) में खेली जाने वाली पत्थरों की राड़ की होली का अपना इतिहास है। रिपोर्ट के मुताबिक भीलूडा गांव में इस होली की शुरुआत तकरीबन 200 साल पहले हुई थी। जिसके बाद से आज तक यहां के लोग इस होली का आनंद लेते हैं। पत्थरों की राड़ की होली के दौरान अगर किसी को चोट लग जाती है और उसके सिर से या शरीर से खून निकलता है तो उसे शुभ माना जाता है। जख्मी होने पर यहां लोग एक दूसरे के खिलाफ शिकायत नहीं करते बल्कि खूनी होली का आनंद लेते हैं।