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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म में भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन है। उन दशावतार में वामन अवतार भगवान विष्णु का पांचवां अवतार है। शास्त्रों में इस बात का चित्रण है कि त्रेता युग में दैत्यों के राजा बलि का अहंकार तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। वामन द्वादशी को विष्णु जयंती भी कहते हैं। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस पावन दिन भगवान विष्णु की भक्ति और आराधना करने से मानव का अहंकार खत्म होता है और उनके आत्मविश्वास में स्थिरता आती है।

    वामन द्वादशी की पूजा-विधि

    आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 10 जुलाई को 2:14 बजे से आरंभ है और समापन 11 जुलाई, सोमवार को 5:02 बजे को होगा। वामन द्वादशी की पूजा का मुहूर्त 11 जुलाई दिन के प्रातः काल 7:22 बजे से लेकर शाम 5:02 बजे तक है।

    वामन द्वादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान वामन की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। उसके बाद उसपर जनेऊ, यानी यज्ञोपवित अर्पित कर पूजा-अर्चना की जाती है। प्रसाद के तौर पर फल और मेवा का भोग चढ़ाया जाता है। वामन द्वादशी के दिन कलश में जल भरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। व्रत के समापन के बाद गरीबों को भोजन कराना चाहिए और यथाशक्ति दान-दक्षिणा करना चाहिए।

    श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। वामन अवतार कथा अनुसार देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं। असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्राह्मण-ब्रह्मचारी का रूप धारण करते हैं।

    वामन अवतार और बलि प्रसंग

    महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते हैं।

    वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंते हैं। वामन रुप में श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते हैं, राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे देते हैं। वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया और अभी तीसरा पैर रखना शेष था।

    ऎसे मे राजा बलि अपना वचन निभाते हुए अपना सिर भगवान के आगे रख देते हैं और वामन भगवान के पैर रखते ही, राजा बलि परलोक पहुंच जाते हैं. बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द होते हैं और बलि को पाताललोक का स्वामी बना देते हैं। इस तरह भगवान वामन देवताओं की सहायता कर उन्हें पुन: स्वर्ग का अधिकारी बनाते हैं।

    इन वस्तुओं का दान करना चाहिए

    वामन द्वादशी की पूजा के बाद एक कटोरी चावल, एक कटोरी चीनी, एक कटोरी दही या अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मण अथवा किसी गरीब को दान करें। इस समय ब्राह्मणों को माला, कमंडल, लाठी, आसन, गीता, छाता, खड़ाऊ, फल और दक्षिणा देने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।