-सीमा कुमारी
सावन का महीना भगवान शिव को अतिप्रिय है। मान्यता है कि इसी महीने में शिव जी माता पार्वती से विवाह करने के लिए बारात लेकर गए थे। यही वह महीना है जब सृष्टि का पूरा भार भोलेनाथ पर होता है और भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लोग सावन में सोमवार के व्रत करते हैं और कांवड़ भी लेकर आते हैं।
‘कांवड़ यात्रा’ का महत्व
माना जाता है कि भगवान शिव सिर्फ भाव के भूखे हैं। उन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से भगवान शिव खुश हो जाते हैं इसी के चलते हर साल शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को ‘कांवड़िया’ कहा जाता है। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को इस दौरान खास नियमों का पालन करना होता है। इस दौरान भक्तों को पैदल यात्रा करनी होती है। यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। साथ ही, आराम करते समय कांवड़ को जमीन पर नहीं बल्कि किसी पेड़ पर लटकाना होता है। अगर आप कांवड़ को जमीन पर रखते हैं, तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धा के अनुसार, भक्तों को नंगे पांव चलना होता है। स्नान के बाद ही कांवड़ को छुआ जाता है। बिना स्नान के कांवड़ को हाथ नहीं नहीं लगाया जाता।