– सीमा कुमारी
सूर्य उपासना का महापर्व छठ का त्योहार एकमात्र ऐसा पर्व है। जिसमें डूबते हुए और उगते सूर्य की पूजा की जाती है। इस चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को। छठ की पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।
छठ पर्व से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। यह कठिन भी है, क्योंकि पूरे नियम-निष्ठा के साथ इसमें व्रतियों को 36 घंटे का निर्जला उपवास रखना पड़ता है। छठ पूजा का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी हैं। आइए जानें –
जानकारों के मुताबिक, प्रकृति में सबसे ज्यादा विटामिन-D सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही होता है। अर्घ्य का समय भी यही है। अदरक और गुड़ खाकर पर्व समाप्त करना लाभकारी होता है। विज्ञान के अनुसार उपवास के बाद भारी भोजन हानिकारक होता है। विज्ञान के नजरिए से देखें तो दीपावली के बाद सूर्य का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। व्रत के साथ-साथ सूर्य के ताप से ऊर्जा का संचय किया जाता है। इससे सर्दी में शरीर स्वस्थ रहता है।
छठ पूजा प्रकृति की पूजा है। छठ पूजा के मौके पर नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है, जो सफाई की भी प्रेरणा देती है। यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की प्रेरणा देता है। इस पर्व में केला, सेब, गन्ना सहित कई फलों की प्रसाद के रूप में पूजा होती है, जिनसे वनस्पति का महत्व भी समझ आता है।
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, ठंड के मौसम में शरीर में कई तरह के परिवर्तन भी होते हैं। जिसका प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है। छठ पर्व का 36 घंटों का उपवास पाचन तंत्र को बेहतर बना देता है। यही नहीं, छठ पूजा एक तरह से प्रकृति की पूजा है।
इस दिन निर्जला व्रत के बाद गन्ने के रस व गुड़ से बनी खीर पर्याप्त ग्लूकोज की मात्रा सृजित करती है। इस पर्व में बनाए जाने वाले अधिकतर प्रसाद में कैल्शियम की भारी मात्रा मौजूद होती है।उपवास की स्थिति में मानव शरीर प्राकृतिक कैल्शियम का ज्यादा उपयोग करता है।
ज्योतिष- शास्त्र में सूर्य को सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है। इस लिहाज से सभी ग्रहों को प्रसन्न करने की बजाय यदि केवल सूर्य की आराधना की जाए और नियमित रूप से अर्घ्य (जल चढ़ाना) दिया जाए तो कई लाभ मिल सकते हैं।