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    सीमा कुमारी

    नयी दिल्ली. कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ‘वैकुंठ चतुर्दशी’ (Vaikunth Chaturdashi) का पावन पर्व मनाया जाता है। आज यानी बुधवार 17 नवंबर को वैकुण्ठ चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस दिन बड़े पैमाने पर पूजा का आयोजन किया जाता है।

    मान्यता है कि, इस दिन महादेव और श्रीहरि विष्णु की उपासना करने से मनुष्य के सभी पाप कट जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिन चार महीने के लिए भगवान शयन निद्रा में चले जाते हैं, उस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं।

    चार महीने के शयन विश्राम के बाद ‘देवउठनी एकादशी’ के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। जिसके बाद ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के दिन भगवान शिव सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंप देते हैं।

    मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ लोक के द्वार भी खुले रहते हैं। साथ ही, कहा जाता है कि जो भी मनुष्य ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा और व्रत करता है, वह मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ धाम चला जाता है।

    आइए जानें ‘वैकुंठ चतुर्दशी’ का शुभ मुहर्त और पूजा-विधि :

    शुभ मुहूर्त

    चतुर्दशी तिथि 17 नवंबर, बुधवार के दिन प्रातः 09 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जाएगी और 18 नवंबर, गुरुवार के दिन दोपहर 12 बजे चतुर्थी तिथि समाप्त होगी।

    पूजा विधि:

     वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सुबह उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। फिर रात में भगवान विष्णु की 108 कमल के फूलों से पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करें। पूजा के दौरान “विना हो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।” मंत्र का जाप करें। इस दिन भगवान शंकर को भी मखाने से बनी खीर का ही भोग लगाना चाहिए।

    महत्व

    वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की 1 हजार कमलों से पूजा करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण का भी विशेष महत्व है। बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत रखने से भी बैकुंठ धाम की अंत में प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद, उसमें मारे गए लोगों का भगवान श्री कृष्ण ने श्राद्ध करवाया था।