सर्वपितृ अमावस्या’: अगर याद नहीं है पितरों की देहांत तिथि, तो इस दिन करें श्राद्ध

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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म में ‘सर्व पितृ अमावस्या’ का बहुत अधिक महत्व होता है। इस साल ‘सर्वपितृ अमावस्या’ 6 अक्टूबर, यानी अगले बुधवार को है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किए जाने को लेकर ही इस तिथि को ‘सर्वपितृ अमावस्या’ कहा जाता है।

    6 अक्टूबर को अमावस्या की तिथि ‘सर्वार्थसिद्धि योग’, ‘ब्रह्मयोग’ सहित अन्य योग-संयोगों में मनाई जाएगी। इस दिन पितृपक्ष यानि श्राद्ध पक्ष भी खत्म होगा। वहीं इसके अगले दिन से ‘शारदीय नवरात्र’ (Navratri) की शुरुआत भी होगी। ‘सर्वपितृ अमावस्या’ के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है। इस अमावस्या को ‘आश्विन अमावस्या’, ‘बड़मावस’ और ‘दर्श अमावस्या’ भी कहते हैं |

    शास्त्रों के मुताबिक, श्राद्ध और तर्पण के जरिए ही हमारे पितरों को अन्न और जल प्राप्त होता है। शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का विशेष महत्व बताया जाता है। ज्योतिषों के मुताबिक, जिन परिजनों को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि याद नहीं है, वह ‘सर्वपितृ अमावस्या’ के दिन श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। ‘सर्वपितृ अमावस्या’ पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। इस दिन पितरों को विदाई दी जाती है। इस दिन पितरों को विदाई देते समय उनसे किसी भी भूल की क्षमा याचना भी करनी चाहिए।

    पितरों को विदा करने की विधि-

    • मान्यताओं के अनुसार, प्रातः उठकर बिना साबुन के स्नान करें व स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • अब श्राद्ध के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
    • बनाए गए पकवान में से थोड़ा-थोड़ा भोजन निकाल कर एक थाली में रखें।
    • अब अपने घर के आंगन में या छत पर जाकर पत्तल में भोजन को जल के साथ रखें।
    • अब पितरों से उसे ग्रहण करने की प्रार्थना करें और गलतियों की क्षमा भी मांगें।
    • अपने घर की देहरी पर उपले की अंगार पर घी, चीनी और चावल के कुछ दाने डालकर अग्नि प्रज्वलित कर अग्यारी करें।
    • शाम के समय सरसों के तेल के दीपक जलाकर चौखट पर रखें।
    • अब पितरों से आशीर्वाद बनाए रखने और अपने लोक लौटने का आग्रह करें।

    मान्यता है कि श्राद्ध या पितृपक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं और उनका किसी भी रूप में अपने वंशजों के घर पर आगमन हो सकता है। ऐसे में पितरों की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए ‘गीता’ के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका पूरा फल पितरों को समर्पित होता है, ऐसे करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।