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    -सीमा कुमारी 

    भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित ‘षटतिला एकादशी’ (Shattila Ekadashi) 28 जनवरी को है। धार्मिक दृष्टि से माघ का महीना बड़ा ही पवित्र एवं शुभ माना जाता है। इस माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को ‘षटतिला एकादशी’ कहते हैं।

    ‘षटतिला एकादशी’ के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है और भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन तिल का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जो जितना तिल दान करता है, उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान पाता है। भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है। आइए जानते हैं कि षटतिला एकादशी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि –

    शुभ-मुहूर्त

    ‘षट्तिला एकादशी’ की तिथि 28 जनवरी को देर रात 02 बजकर 16 मिनट पर शुरू होकर 28 जनवरी को रात्रि में 11 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। अतः व्रती 28 जनवरी के दिन एकादशी व्रत रख भगवान श्रीविष्णु की पूजा-आराधना कर सकते हैं।

    व्रत पूजा

    जो श्रद्धालु ‘षटतिला एकादशी’ का व्रत रखना चाहते हैं। उन्हें प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर नित्यक्रिया के बाद तिल का उबटन लगाकर पानी में तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए।

    इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को तिल का प्रसाद अर्पित करें और तिल से ही हवन करें। इस एकादशी के व्रत में तिल का दान करना उत्तम बताया गया है। जल पीने की इच्छा हो तो जल में तिल मिलाकर पीएं।

    जो लोग व्रत नहीं कर सकते हैं, उनके लिए जितना संभव हो तिल का उपयोग करें। तिल खाएं, तिल मिला हुआ पानी पिएं। तिल का उबटन लगाकर स्नान करें और तिल का दान भी करें। अगर इतना सबकुछ करना संभव नहीं हो तो सिर्फ तिल का उच्चारण ही करें तो भी पाप कर्मों के अशुभ प्रभाव में कमी आएगी।

    महत्व

    वैसे तो सभी एकादशी व्रत को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है। लेकिन शास्त्रों में हर एकादशी का अलग महत्व बताया गया है. ‘षटतिला एकादशी’ (Shattila Ekadashi) के व्रत से घर में सुख-शांति के वास होता है। व्रत रहने वाले को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते है। कहा जाता है कि, व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उतना ही पुण्य ‘षटतिला एकादशी’का व्रत रखने से भी प्राप्त होता है। अंत में मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।