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    सनातन हिंदू धर्म में ‘गणेश चतुर्थी’’ का बड़ा महत्व है। हर साल समूचे देश में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का पावन पर्व बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इस साल यह पावन पर्व 10 सितंबर, यानी अगले शुक्रवार को मनाया जाएगा। शास्त्रों के मुताबिक, चतुर्थी तिथि बुद्धि और शुभता के देव भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। ऐसे में हर शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा अवश्य की जाती है।

    गणपति बप्पा को गजानन, एकाक्षर, विर्घ्नहर्ता, एकदंत आदि कई नामों से भी बुलाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है गणपति जी का नाम एकदंत कैसे पड़ा, आखिर क्या इसके पीछे की रोचक कहानी आइए जानें –

    पौराणिक कथा  के अनुसार, विर्घ्नहर्ता गणेश को ‘एकदंत’ इसलिए कहा जाता है, क्‍योंकि उनका एक दांत टूटा हुआ है। ये दांत किसने तोड़ा, उससे जुड़ी अलग-अलग पौराणिक कथाएं हैं। सबसे प्रचलित कथा गणेश और परशुराम की लड़ाई से जुड़ी है। एक बार परशुराम भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे लेकिन द्वार पर खड़े गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। परशुराम ने गणेशजी से काफी विनती की, लेकिन वो नहीं माने। आखिरकार, परशुराम ने गणपति को युद्ध की चुनौती दी।

    इस चुनौती को स्वीकार करते हुए गणेश जी ने युद्ध किया। लेकिन, इस दौरान परशुराम के फरसे के वार से उनका एक दांत टूट गया और पीड़ा से ‘एकदंत’ कराह उठे। पुत्र की पीड़ा सुन माता पार्वती आईं और गणेश को इस अवस्था में देख परशुराम पर क्रोधित होकर दुर्गा के स्वरूप में आ गईं। यह देख परशुराम समझ गए उनसे भयंकर भूल हुई है। परशुराम ने माता पार्वती से क्षमा याचना कर ‘एकदंत’ की विनम्रता की सराहना की।

    परशुराम ने गणेश को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया। इस प्रकार गणेश की शिक्षा विष्णु के अवतार गुरू परशुराम के आशीष से सहज ही हो गई। कालांतर में उन्होंने इसी टूटे दंत से महर्षि वेदव्यास से उच्चरित ‘महाभारत-कथा’ का लेखन किया। भगवान गणेश के ‘एकदंत विग्रह’ का पूजन वंदन स्मरण गणेशोत्सव के दौरान चौथे दिन अर्थात् भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को करना विशेष फलदायी माना गया है।

    देवताओं में प्रथम पूज्य श्रीगणेश को ‘एकदंत’ रूप आदिशक्ति पार्वती, आदिश्वर भोलेनाथ और जगतपालक श्रीहरि विष्णु की सामूहिक कृपा से प्राप्त हुआ। गणेश इसी रूप में समस्त लोकों में पूजनीय, वंदनीय हैं।

    – सीमा कुमारी