आज है ‘श्रावण स्कंद षष्ठी’, शत्रुओं पर विजय का व्रत, जानिए तिथि, पूजा का मुहूर्त और इसकी महिमा

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    सीमा कुमारी

    इस साल सावन महीने की ‘स्कंद षष्ठी’ (Skanda shashti) आज यानी 03 अगस्त दिन बुधवार को है। यह व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।

    सनातन धर्म में हर दिन और तिथि किसी न किसी देवी-देवता की साधना-आराधना के लिए शुभ और शीघ्र फलदायी मानी गई है। पंचांग (Panchang) के मुताबिक, हर महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली षष्ठी तिथि को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी मानी गई है।

    यह व्रत पूर्णिमा और अमावस्या के 6 दिन के बाद, यानि महीने में दो बार पड़ता है। अमावस्या के बाद पडने वाले ‘स्कंद षष्ठी’ पर विशेष रुप से व्रत रखकर मनाया जाता है। आइए जानें सावन स्कंद षष्ठी व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त, योग आदि के बारे में-

    तिथि

    पंचांग के अनुसार, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ 03 अगस्त को प्रात: 05 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है और यह तिथि 04 अगस्त को प्रात: 05 बजकर 40 मिनट तक मान्य रहेगी। उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, ‘सावन स्कंद षष्ठी व्रत’ 03 अगस्त को रखा जाएगा।

    सावन स्कंद षष्ठी का मुहूर्त

    03 अगस्त को स्कंद षष्ठी व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बना हुआ है। सिद्ध और साध्य योग के साथ हस्त और चित्रा नक्षत्र भी हैं। ये सभी योग और नक्षत्र शुभ माने जाते हैं। ‘स्कंद षष्ठी’ के दिन सिद्ध योग सुबह से लेकर शाम 05 बजकर 49 मिनट तक है और उसके बाद से साध्य योग प्रारंभ हो जाएगा।

    सावन ‘स्कंद षष्ठी’ वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 05 बजकर 43 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 24 मिनट तक है। वहीं अमृत सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 51 मिनट तक हैं। उसके बाद शाम को 06 बजकर 24 मिनट से अगले दिन 04 अगस्त को प्रात: 05 बजकर 44 मिनट तक हैं।  

    ऐसे में देखा जाए तो ‘स्कंद षष्ठी’के दिन प्रात:काल से ही शुभ योग बने हुए हैं।  हालांकि इस दिन का कोई शुभ समय या अभिजीत मुहूर्त नहीं है। इस दिन राहुकाल दोहपर 12 बजकर 27 मिनट से दोपहर 02 बजकर 08 मिनट तक है।

     महिमा

    पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान स्कंद कुमार ने ‘स्कंद षष्ठी’ वाले दिन ही तारकासुर का वध किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी की साधना करने पर ही च्यवन ऋषि को नेत्र ज्योति प्राप्त हुई थी। भगवान मुरुगन का आशीर्वाद दिलाने वाले इस व्रत के बारे में मान्यता है कि इस व्रत को करने पर जीवन से जुड़े बड़े-से-बड़ा शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। यह व्रत निसंतान लोगों के लिए वरदान माना जाता है, जिसे करने पर उन्हें शीघ्र ही संतान सुख प्राप्त होता है।