आज है ‘सिंदूर खेला’, जानिए क्यों मनाई जाती है दशहरा के दिन यह विशेष रस्म

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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: दुर्गा पूजा (Durga Puja 2023) यानी नवरात्रि (Navaratri 2023) हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दुर्गा पूजा उत्सव के अंतिम दिन यानी दशहरा पर माता के विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। इस साल सिंदूर खेला (Sindur Khela 2023) आज यानी 24 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। बंगाली समुदाय की हिन्दू महिलाएं इस रस्म को निभाती है। सिंदूर खेला यानी ‘सिंदूर का खेल’ या सिंदूर से खेले जाने वाली होली। बंगाल से लेकर काशी तक इस परंपरा को निभाई जाती है।

दुर्गा पूजा पंडालों में भी यह रस्म निभाई जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, सिंदूर खेला को सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इसके अलावा, मान्यता ये भी है कि सिंदूर खेला से पति की आयु भी बढ़ती है। इन सभी बातों को ध्यान रखते हुए इस रस्म को निभाई जाती है। आइए जानें क्या है सिंदूर खेला का महत्व।

ज्योतिषियों के अनुसार, महाआरती के साथ इस दिन की शुरुआत होती है। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि पकवानों का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद इस प्रसाद को सभी में बांटा जाता है। मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। जिसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन किया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिंदूर खेला की प्रथा आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। जी हां 450 साल पहले इस प्रथा की शुरुआत की गई थी। यह रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में शुरू हुई थी। ऐसी मान्यता है की मां दुर्गा साल भर में एक बार अपने मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद वापस से अपने ससुराल चली जाती हैं। जब मां अपने मायके आती हैं तो उसे अवधि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि सिंदूर खेला के साथ ही बंगाली समुदाय का एक बहुत ही खास धुनुची डांस भी किया जाता है। इस नृत्य के जरिए मां दुर्गा को खुश किया जाता है।