Vallabhacharya Jayanti 2024, Lord Krishna, Lifestyle
वल्लभाचार्य जयंती 2024 (Social Media)

भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) की भक्ति से प्रेरित 'श्री वल्लभाचार्य' (Vallabhacharya Jayanti 2024) जी की जयंती पूरे भारत सहित तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और चेन्नई में बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है।

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सीमा कुमारी

नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क:
भारत के इतिहास में कई ऐसे महापुरुष और संत हुए हैं जिन्होंने ईश्वर और उनकी भक्ति का एक अलग ही मार्ग खोजा। इन्हीं संतों में से एक थे- श्री वल्लभाचार्य। आपको बता दें, श्री वल्लभाचार्य एक प्रसिद्ध हिंदू विद्वान थे जिन्हें भारत के धार्मिक भक्ति आंदोलन का अग्रदूत भी माना जाता है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) की भक्ति से प्रेरित ‘श्री वल्लभाचार्य’ (Vallabhacharya Jayanti 2024) जी की जयंती पूरे भारत सहित तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और चेन्नई में बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है।

4 मई को वरुथिनी एकादशी भी

इस बार इस महान संत की जयंती 4 मई 2024 शनिवार को ‘वरूथिनी एकादशी’ (Varuthini Ekadashi 2024) पावन तिथि के दिन मनाई जाएगी और यह उनका आज 545 वां जन्मदिन भी होगा। ऐसे में आइए जानें इस साल ‘वल्लभाचार्य जयंती’ किस दिन मनाई जाएगी।

तिथि

पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन वल्लभाचार्य का जन्म हुआ था। यह दिन वरुथिनी एकादशी के साथ भी मेल खाता है। जिसके अनुसार इस साल महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की जयंती शनिवार, 4 मई 2024 को पूरे देश में मनाई जाएगी और यह उनका 545 वां जन्मदिन होगा।

महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की महिमा

1- जानकारों के अनुसार, हिंदू धर्म में वल्लभ आचार्य जयंती की बहुत महिमा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्री वल्लभ आचार्य भगवान श्रीनाथ का ही स्वरूप है। श्री वल्लभ आचार्य का जन्म एक ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट के घर हुआ था। वल्लभाचार्य जी अष्टमास में पैदा हुए थे। उस समय श्री वल्लभ आचार्य में कोई चेतना नहीं थी। ऐसे में दुखी मन से उनके माता पिता उन्हें मृत समझ कर छोड़ दिया था। ऐसे में श्री नाथ जी में श्री वल्लभ आचार्य की माता इल्लामागारू को सपने में दर्शन दिया और कहा कि जिस शिशु को तुम छोड़ आए हो वो जीवित है। तुम्हारे गर्भ से स्वयं श्रीनाथ ने जन्म लिया है। भगवान की अद्भुत वाणी सुनकर जब उनके माता- पिता वहां गए तो देखा कि शिशु के चारों तरह आग की लपटें हैं और वो बीच में बड़ी शांति से अंगूठा चूस रहे थे।

2-श्री वल्लभ आचार्य भगवान कृष्ण के श्री नाथ स्वरुप के अनन्य भक्त थे इसलिए उनकी जयंती के दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा-अर्चना की जाती हैं। वल्लभाचार्य जी ने कई महान ग्रंथ और स्त्रोत भी लिखे है।

3- श्री वल्लभाचार्य को भगवान श्री कृष्ण के श्रीनाथजी रूप के दर्शन को लेकर एक अनोखी कथा प्रचलित है कि जब श्री वल्लभाचार्य भारत भ्रमण की ओर निकले तब भारत के उत्तर-पश्चिम हिस्से की ओर बढ़ते समय, उन्होंने गोवर्धन पर्वत के पास एक रहस्यमय घटना होते देखी उन्होंने पहाड़ के एक विशेष स्थान पर एक गाय को दूध बहाते हुए देखा। जब श्री वल्लभाचार्य ने उस स्थान की खुदाई शुरू की जिसमें उन्हें भगवान कृष्ण की एक मूर्ति प्राप्त हुई, माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने उन्हें श्रीनाथजी के रूप में दर्शन दिए और उन्हें अपने गले से लगाया। उस दिन से, श्री वल्लभाचार्य के अनुयायी बड़ी भक्ति के साथ बाला या भगवान कृष्ण की किशोर छवि की पूजा करते हैं।

4- प्राप्त जानकारी के अनुसार, वल्लभाचार्य जयंती के अवसर पर हमारे देश में कुछ खास परंपराओं के साथ उत्सव मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों और सभी धार्मिक स्थलों को फूलों से सजाया जाता है। भक्त सुबह-सुबह भगवान कृष्ण का अभिषेक करते हैं। अभिषेक की विधि पूरी होने के बाद आरती शुरू की जाती है, जिसमें मंदिर के पुजारी और सभी भक्त भगवान श्री कृष्ण के गीत गाते हैं। इसके बाद रथ यात्रा के लिए भगवान श्री कृष्ण की तस्वीर को रथ पर रख दिया जाता है। जिसके बाद इस झांकी को आसपास के इलाकों में घुमाया जाता है। जिससे सभी को रथ यात्रा की झांकी के दर्शन हो सके। इसके बाद अंत में सभी भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है और दिन के समापन श्री वल्लभाचार्य के पौराणिक कार्यों को स्मरण करने और उनकी प्रशंसा करने के साथ होता है।