‘बैसाखी’ का गुरु गोविंद सिंह से क्या है नाता, जानिए इस महापर्व का इतिहास और इसका महत्व

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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: सुख और समृद्धि का प्रतीक ‘बैसाखी’ (Baisakhi 2023) का महापर्व हर साल वैशाख महीने में पड़ने वाली मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष ‘बैसाखी’ का महापर्व 14 अप्रैल 2023,शुक्रवार को देशभर में मनाया जाएगा। बैसाखी के दिन सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है। इस पर्व से कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। सिख समुदाय के लोग इस दिन को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं।  

देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जानते हैं। असम में इसे बिहू, केरल में पूरम विशु, बंगाल में नबा वर्ष जैसे नामों से जाना जाता है। सिख समुदाय के लोगों के लिए यह पर्व काफी महत्वपूर्ण होता है। इस दिन वह अपने करीबियों, रिश्तेदारों के संग मिलकर खुशियां मनाते हैं। इस दिन विधिवत तरीके से अनाज की पूजा करने के साथ अच्छी फसल के लिए भगवान को शुक्रिया कहते हैं। इस साल ये त्योहार 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है। आइए जानें बैसाखी का महत्व, कारण और मनाने का तरीका।

क्यों मनाते हैं बैसाखी पर्व

इस पर्व की शुरुआत सिख पंथ के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसके साथ ही इस दिन से बैसाखी पर्व की शुरुआत भी हुई थी। सिख धर्म की स्थापना के साथ-साथ फसल पकने के रूप में ये पर्व मनाते हैं। दरअसल, इस माह रबी फसल पक कर तैयार हो जाती है और काटना शुरू कर देते हैं। इसी कारण किसान लोग अपनी खुशी त्योहार के रूप में मनाते हैं।

महत्व

यह दिन वसंत ऋतु (Spring Season) के आगमन को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता हैं। इस दिन किसान पूरे साल भरपूर फसल के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं। यह देखते हुए कि बैसाखी नया साल है, सिख धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म में भी बैसाखी पर्व का अधिक महत्व है। इस दिन स्नान-दान और पूजा पाठ करने का विधान है।’

मान्यताओं के अनुसार, मुनि भागीरथ ने देवी गंगा को धरती में उतारने के लिए कठोर तपस्या की थी और आज के दिन ही उनकी तपस्या पूर्ण हुई थी। इसलिए आज के दिन गंगा स्नान के साथ गंगा जी की पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा आज के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहे हैं जिसके कारण इसे मेष संक्रांति कहा जाता है। इसका असर हर राशि के जातकों पर पड़ेगा।

 इस दिन नगर कीर्तन, गुरुद्वारा जाना, भव्य भोजन तैयार करना और परिवार और दोस्तों के साथ दावत देना आदि किया जाता हैं। जहां सिख समुदाय के लोग झीलों या नदियों में डुबकी लगाते हैं, वहीं कई हिंदू गंगा, कावेरी और झेलम में डुबकी लगाकर बैसाखी मनाते हैं।