देवता क्यों नहीं कर सकते थे महिषासुर का वध, जानिए महिषासुर ने ब्रह्मा से क्या पाया था वरदान, ‘तब’ अवतरित हुईं मां दुर्गा

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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: हर साल अश्विन माह में पड़ने वाली ‘शारदीय नवरात्रि’ का महापर्व पूरे देश भर में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें मां दुर्गा की प्रतिमाएं विराजित की जाती है। साथ ही कई स्थानों पर गरबा और रामलीलाओं का आयोजन भी किया जाता है। आदि शक्ति मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के दिनों में आपने देखा होगा कि जहां भी मां दुर्गा की पूजा होती है वहां माता की मूर्ति के साथ उस परम शक्तिशाली असुर महिषासुर की भी प्रतिमा माता के साथ जरूर होती है।

इस मूर्ति में माता त्रिशूल से महिषासुर का वध कर रही होती हैं। तस्वीरों में भी माता के साथ महिषासुर को दर्शाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि माता के साथ महिषासुर क्यों होता है। दरअसल इसके पीछे माता का करुणामय हृदय है जो शत्रुओं पर भी दया भाव रखता है। ऐसे में आइए जानें इसके पीछे के रहस्य के बारे में

पौराणिक कथा के अनुसार, रंभ नामक एक असुर था, जिसने अग्निदेव की तपस्या से एक पुत्र को प्राप्त किया था जो एक महिषी यानी भैंस से उत्पन्न हुआ था इसलिए वह महिषासुर कहलाया। यह असुर वरदान के कारण जब चाहे मनुष्य और भैंस का रूप ले सकता था। ब्रह्माजी की तपस्या करके इसने वरदान पा लिया था कि कोई स्त्री ही उसका अंत कर सकती है। इसलिए यह देवताओं के लिए अजेय था और शक्ति के मद में आकर उसने देवलोक पर अधिकार कर लिया।

महिषासुर के शासन में देवता और मनुष्य भयभीत रहने लगे। ऐसे में सभी देवी देवताओं ने अपने तेज को मिलाकर एक तेजोमय शक्ति को प्रकट किया जो स्त्री-रूप में अवतरित हुई। यह देवी मां दुर्गा कहलायीं। सभी देवी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र से देवी को सुसज्जित किया।

महिषासुर के शासन में देवता और मनुष्य भयभीत रहने लगे। ऐसे में सभी देवी देवताओं ने अपने तेज को मिलाकर एक तेजोमय शक्ति को प्रकट किया जो स्त्री रूप में अवतरित हुई। यह देवी मां दुर्गा कहलायीं। सभी देवी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र से देवी को सुसज्जित किया। माता के इसी वरदान के कारण देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि माता के साथ महिषासुर का वध करते हुए माता की मूर्ति बनाकर देवी की नौ दिनों तक पूजा करनी चाहिए इससे भक्तों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।