धनतेरस के दिन क्यों जलाया जाता है ‘यम दीपक’, जानिए कितने मुख का हो यह दीया

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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: पांच दिनों तक चलने वाला दीपोत्सव यानी दिवाली का पर्व ‘धनतेरस’ (Dhanteras 2023) के साथ आऱंभ हो जाता है। इस बार धनतेरस 10 नवंबर और दिवाली 12 नवंबर को मनाई जा रही है। धनतेरस के दिन यम के नाम से भी दीपक जलाया जाता है। लगभग सभी हिंदू घरों में यम का दीपक जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते है आखिर धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यम के नाम से दीपक क्यों जलाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है, आइए जानें इसके बारे में-

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पौराणिक कथा के अनुसार, धनतेरस के दिन यम दीपक जलाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। किसी राज्य में हेम नामक राजा था। ईश्वर की कृपा से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ। जब विशेषज्ञों ने उनके बेटे की कुंडली दिखाई, तो उन्हें पता चला कि शादी के चार महीने बाद राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी। ऐसे में राजा ने उसे ऐसी जगह भेज दिया, जहां किसी लड़की की परछाई भी उस पर न पड़े। लेकिन वहां उन्होंने एक राजकुमारी से विवाह कर लिया। रीति के अनुसार विवाह के चौथे दिन यमराज के दूत राजकुमार के पास आए।

यह देखकर राजकुमारी बहुत रोई। दूतों ने ये सारी बातें यमराज को बताई और यम के दूतों में से एक ने कहा, “हे यमराज, ऐसा कोई उपाय नहीं है, जिससे किसी व्यक्ति को अकाल मृत्यु से बचाया जा सके।” तब उन्होंने यमराज से कहा कि जो कोई कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन शाम के समय मेरी ओर से दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा, तो वह अकाल मृत्यु से बच जाएगा। इसी कारण से हर साल धनतेरस पर यम का दीपक जलाने की परंपरा है।

ज्योतिषियों की मानें तो, धनतेरस के दिन आटे का चौमुखा दीपक बनाएं या मिट्टी के दीपक के चारों ओर बाती रखें और उसमें सरसों का तेल भरें। इसके बाद इस दीपक को घर की दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाएं। इसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें।

मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्।