महादेव शिव की पूजा ‘इनके’ बिना है अधूरी, सावन में इस पेड़ पर बांधें ‘इस’ रंग की चूड़ियां, मिलेगी विशेष कृपा

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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: सावन का महीना भगवान शिव के लिए सबसे पवित्र और प्रिय माना जाता है। कहा जाता है कि इसी महीने भगवान पृथ्वी पर आते हैं और जो जैसा कर्म करता है, उसको वैसा फल देते है। सावन में शिव पूजन सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव देवों के देव हैं और माता पार्वती जगत जननी आदिशक्ति है। ऐसे में शिव-पार्वती के मिलन से ही इस ब्राह्मण का निर्माण हुआ है।  भगवान शिव की पूजा के साथ माता पार्वती की पूजा जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से महादेव और माता पार्वती दोनों की असीम कृपा बरसती है।

यदि पति-पत्नी में अक्सर मतभेद हैं या घर में दरिद्रता है तो बेल के पेड़ के नीचे पूजा करनी चाहिए और पेड़ पर 7 हरी चूड़ियां बांधनी चाहिए। यह शिव-पार्वती को प्रसन्न करता है और दरिद्रता दूर होती है। आइए जानें माता गौरा को प्रसन्न करने का तरीका और घर से दरिद्रता दूर करने का उपाय-

भगवान शिव माता गौरी के बिना अधूरे माने जाते हैं, इसलिए शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा जरूर करना चाहिए। सावन में कई महिलाएं मंगला व्रत भी रखती हैं, ताकि माता पार्वती से उन्हें सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। माता पार्वती की कृपा जिस स्त्री पर होती है, उसकी सारी पीड़ा नष्ट हो जाती है।

ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, सावन महीने में पूजा का महत्व तो है ही साथ में एक और भी कार्य करेंगे तो आपकी तरक्की और खुशहाली लगातार बढ़ती रहेगी। बिगड़े काम भी बन जाएंगे। ऐसे में यदि पति-पत्नी के बीच प्रेम संबंध ठीक नहीं हैं या घर में दरिद्रता का वास है तो बेल के पेड़ के नीचे जरूर पूजा करनी चाहिए। यहीं पर पूजा के दौरान बेल के पेड़ में हरे रंग की 7 चूड़ियां बांधनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती दोनों की कृपा होती है। इससे गृहस्थ जीवन में सुधार होता है।

शिवजी को प्रसन्न करना सबसे आसान है। इसके लिए आप मात्र एक लोटा शुद्ध जल चढ़ाकर भी उन्हें खुश कर सकते हैं। हालांकि, जल चढ़ाते वक्त ‘ओम नम: शिवाय’ का जाप करना जरूरी होता है। सावन मास प्रेम का महीना भी माना जाता है। माना जाता है कि इसी महीने में माता पार्वती ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।