कभी साइन बोर्ड पेंटर थे राहत इंदौरी, हालात से लड़कर पाया शायरी में ऊंचा मुकाम

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इंदौर: 11 अगस्त (भाषा) कोरोना वायरस संक्रमण से मंगलवार को राहत इंदौरी का निधन होने के बाद अदब की मंचीय दुनिया ने वह नामचीन दस्तखत खो दिया है जिनका काव्य पाठ सुनने के लिये दुनिया भर के मुशायरों और कवि सम्मेलनों में लोग बड़ी तादाद में उमड़ पड़ते थे। हालांकि, यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि एक जमाने में वह पेशेवर तौर पर साइन बोर्ड पेंटर थे। इंदौरी के परिवार के करीबी सैयद वाहिद अली ने “पीटीआई-भाषा” को बताया, “शहर के मालवा मिल इलाके में करीब 50 साल पहले उनकी पेंटिंग की दुकान थी। उस वक्त वह साइन बोर्ड पेंटिंग के जरिये आजीविका कमाते थे।”

अली ने बताया कि उर्दू में ऊंची तालीम लेने के बाद इंदौरी एक स्थानीय कॉलेज में इस जुबान के प्रोफेसर बन गये थे। लेकिन बाद में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और वह अपना पूरा वक्त शायरी और मंचीय काव्य पाठ को देने लगे थे। अपने 70 साल के जीवन में इंदौरी पिछले साढ़े चार दशक से अलग-अलग मंचों पर शायरी पढ़ रहे थे। उन्होंने कुछ हिन्दी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे थे। लेकिन बाद में फिल्मी गीत लेखन से उनका मोहभंग हो गया था। इंदौरी का असली नाम “राहत कुरैशी” था।

हालांकि, इंदौर में पैदाइश और पलने-बढ़ने के कारण उन्होंने अपना तखल्लुस (शायर का उपनाम) “इंदौरी” चुना था। उनके पिता एक कपड़ा मिल के मजदूर थे और उनका बचपन संघर्ष के साये में बीता था। अली ने बताया, “इस संघर्ष ने इंदौरी की शायरी को नये तेवर दिये। वह हालात से लड़ते हुए शायरी की दुनिया में सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ते रहे।” इस बात का सबूत इंदौरी के इस शेर में मिलता है-“शाखों से टूट जायें, वो पत्ते नहीं हैं हम, आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे।”

इसी तासीर का उनका एक और शेर है -“आंख में पानी रखो, होंठों पर चिंगारी रखो, जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।” इंदौरी के करीबी लोग बताते हैं कि पिछले कुछ बरसों में वह दुनिया भर में लगातार मंचीय प्रस्तुतियां दे रहे थे और अपने इन दौरों के कारण गृहनगर में कम ही रह पाते थे। बहरहाल, कोविड-19 के प्रकोप के कारण वह गुजरे साढ़े चार महीनों से उस इंदौर के अपने घर में रहने को मजबूर थे जो देश में इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में शामिल है।

इंदौरी ने अपनी मशहूर गजल “बुलाती है, मगर जाने का नईं (नहीं)” का एक शेर 14 मार्च को ट्वीट किया था-“वबा फैली हुई है हर तरफ, अभी माहौल मर जाने का नईं…..” इंदौरी ने अपने इस ट्वीट के साथ “कोविड-19” और “कोरोना” जैसे हैश टैग इस्तेमाल करते हुए यह भी बताया था कि वबा का हिन्दी अर्थ महामारी होता है। कोविड-19 की महामारी से इंदौरी के निधन से देश-दुनिया में उनके लाखों प्रशंसकों में शोक की लहर फैल गयी है और उन्हें सोशल मीडिया पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा रही है।(एजेंसी)