Traffic Jam
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  • सड़कों पर बढ़ रहा वाहनों का दबाव

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नागपुर. शहर में ट्राफिक व्यवस्था सुधारने के लिए प्लानिंग तो की गई है लेकिन उसे अमल में लाया जाना नजर नहीं आ रहा है. शहर में वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है और सड़कों पर पैदल चलने वालों की भीड़ में भी इजाफा होता जा रहा है. कुछ वर्ष पूर्व जिन सड़कों में ट्राफिक सुचारू हुआ करती थी आज उन्हीं सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल मची रहती है. कई ऐसे चौराहें व सड़कें हैं जहां आफिस के समय और छूटने के वक्त जाम का नजारा होता है. कुछ सड़कों व बाजारक्षेत्र में तो हमेशा ही इतनी भीड़ होती है कि दोपहिया वाहन भी 20-30 की स्पीड से अधिक नहीं चलाया जा सकता है. आरेंज सिटी की सड़कों पर रोजाना वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है. बढ़ते वाहनों के कारण शहर में प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है. पर्यावरण को शुद्ध रखने की उपाययोजना भी शहर में की जाती नजर नहीं आ रही है. डीजल व केरोसिन से चलने वाले आटो, वर्षों पुरानी खटारा एसटी की बसें, खटारा सिटी बसें शहर की हवा को प्रदूषित कर रही हैं लेकिन ऐसे वाहनों को बाहर करने की कार्रवाई भी नहीं की जा रही है.

88 फीसदी निजी वाहन

शहर में मेट्रो रेल शुरू हो गई है. हालांकि सभी स्टेशन शुरू नहीं हो पाये हैं. मेट्रो रेल शुरू करने का उद्देश्य सिटी बसों, आटो आदि पर ट्राफिक का दबाव कम करना भी है. लेकिन फिलहाल तो नागरिक सार्वजनिक साधनों का उपयोग करने से ही कतराते हैं. सिटी में 88 फीसदी लोग अपने निजी वाहन से चलना पसंद करते हैं. सार्वजनिक वाहनों का प्रतिशत केवल 12 प्रतिशत ही है. शहर का विस्तार होता जा रहा है और आज भी कई इलाकों में सिटी बस सेवाएं नहीं हैं. कुछ इलाको में फेरियां बेहद कम हैं. अंदरूनी सड़कों के लिए छोटी बसों की व्यवस्था नहीं है. आसपास के तहसील मुख्यालयों से आने-जाने के लिए लोकल ट्रेनों की व्यवस्था नहीं है. कुल 200 के लगभग सिटी बसें और 17500 आटो की बदौलत शहर की सार्वजनिक यातायात व्यवस्था टिकी है जो बेहद अपर्याप्त है. मेट्रो ट्रेन को फुलफ्लैश में दौड़ने में अभी वक्त है. 

कागजों पर योजना

बताते चलें कि तात्कालीन एनआईटी चेयरमेन प्रवीण दराडे ने आगामी 20 वर्षों में शहर की जनसंख्या और जरूरतों को देखते हुए एक काम्परिहेन्सिव मोबिलीटी प्लान तैयार किया था. उन्होंने ट्राफिक मैनेजमेंट को सुधारने के लिए शहर को 250 जोन में बांटकर अध्ययन किया था. शहर में वाहनों की बढ़ती भीड़ को ध्यान में रखकर साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित यातायात हो इसका ध्यान रखा था. प्लान में फुटपाथ जोन, स्काय जोन, जंक्शन में सुधार, फेरीवालों का व्यवस्थापन, अतिक्रमण पर प्रतिबंध, सिटी बस मार्ग का विस्तार, ट्रक टर्मिनस आदि उपाययोजना अपने प्लान में शामिल की.

साइकिल चलाने वालों के लिए सेपरेट सुरक्षित मार्ग का सुझाव भी दिया गया था. सार्वजनिक जगहों पर पार्किंग व्यवस्था यानी ट्राफिक एंड ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट सेंटर, आफ स्ट्रीट पार्किंग के साथ ही सार्वजनिक परिवहन के साधनों को बढ़ाने की जरूरत उन्होंने बताई थी. उनका मानना था कि यदि ट्राफिक को सुचारू करना है और शहर से प्रदूषण को नियंत्रित करना है तो साइकिल का उपयोग अधिक से अधिक हो, सार्वजनिक वाहनों का उपयोग अधिक हो और पैदल चलाने वालों के लिए सुरक्षित फुटपाथ हों. ये 3 सूत्र उन्होंने ट्राफिक मैनेजमेंट में सुधार के लिए बताये थे लेकिन अब तक फुटपाथ तक खाली नहीं कराये जा सकें हैं बाकी उपाययोजनाओं की तो बात ही दूर है.

प्रदूषण नियंत्रण की कार्रवाई ठप

एक ओर ट्राफिक का हुलिया बिगड़ा है और दूसरी ओर केरोसिन से चलने वाले आटो और डीजल की खटारा बसें शहर की आबोहवा प्रदूषित कर रही हैं. शहर में 17500 थ्री सीटर आटो हैं जिनमें से कई चालक अपने मुनाफे के लिए पेट्रोल में केरोसिन मिलकार आटो दौड़ा रहे हैं जिससे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. सिटी बसें खटारा हो गई हैं और डीजल का काला धुंआ छोड़ती इन बसों को देखा जा सकता है. एसटी की वर्षों पुरानी बसें प्रदूषण फैला रही हैं लेकिन आरटीओ पुरानी खटारा को बाहर का रास्ता दिखाने की कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. कुछ वर्ष पूर्व केरोसिन से चलने वाले आटो के खिलाफ पुलिस, आरटीओ व अन्न-आपूर्ति विभाग की संयुक्त कार्रवाई हुई थी लेकिन उसके बाद से कोई कार्रवाई नहीं की गई.