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    नागपुर. कोरोना प्रादुर्भाव की वजह से इस सत्र से भी स्कूल शुरू नहीं हो सका. सरकार ने कोविड फ्री ग्राम पंचायतों में स्कूल शुरू करने की अनुमति तो दी है, लेकिन उपस्थिति महज कुछ ही फीसदी है. जबकि शहरी भागों में अब भी ऑनलाइन के भरोसे ही भविष्य गढ़ा जा रहा है. ग्रामीण और दुर्गम भागों के साथ ही निर्धन व जरूरतमंद छात्र न ही ऑफलाइन और न ही ऑनलाइन पढ़ाई में शामिल हो रहे हैं. पिछले वर्ष से लेकर अब तक सरकार ने इस छात्रों के बारे में कोई पहल नहीं की है. कोरोना का हवाला देकर इन छात्रों को उनकी किस्मत पर छोड़ दिया गया है. यदि स्थिति यही रही तो यह छात्र शिक्षा के मुख्य प्रवाह से दूर हो जाएंगे.

    कोरोना के कारण पिछले डेढ़ वर्ष से स्कूल बंद है. जिले में पहली से लेकर 12वीं तक 8 लाख 19 हजार 59 विद्यार्थी अध्ययनरत है. इनमें से केवल 3 लाख 18 हजार 555 विद्यार्थियों को ही प्रत्यक्ष व ऑनलाइन शिक्षा मिल रही है. जबकि 5 लाख से अधिक छात्र अब भी शिक्षा से दूर है. इतने दिनों बाद भी सरकार ने अध्ययन की नई संकल्पना पर विचार नहीं किया है. यही वजह है कि छात्रों का नुकसान हो रहा है. 

    सरकार को जल्द लेना होगा निर्णय: केरडे  

    विजुक्टा के प्रांतीय उपाध्यक्ष विलास केरडे पाटिल ने बताया कि कोविड की वजह से छात्रों का सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. ऑनलाइन में केवल वहीं छात्र शामिल हो रहे हैं, जिनके पास साधन-सुविधाएं उपलब्ध है. जबकि निर्धन व जरूरतमंद छात्र पिछड़ रहे हैं. आर्थिक रूप से कमजोर छात्र नेट का इस्तेमाल नहीं कर सकते. यही वजह है कि अब सरकार को जल्द ही स्कूल शुरू करने के बारे में निर्णय लेना चाहिए. जिस तरह कोविड नियमों का पालन करते हुए शादी समारोह आयोजित किये जा रहे हैं, उसी तरह स्कूल भी शुरू करने का वक्त आ गया है. अन्यथा अनेक छात्र शिक्षा से दूर हो जाएंगे. 

    छात्रवृति की निधि से बांटे मोबाइल और टैब : शिवनकर  

    भाजपा शिक्षक आघाड़ी के पूर्व विदर्भ संयोजक अनिल शिवनकर ने बताया कि निर्धन, आदिवासी और दुर्गम भाग के छात्र ही शिक्षा से वंचित हो रहे है. इन छात्रों के बारे में निर्णय लेना सरकार की जिम्मेदारी है. सरकार छात्रों को छात्रवृति प्रदान करती है. उसी छात्रवृति से जरूरतमंद छात्रों को मोबाइल और टैब देने की जरूरत है. सरकार के इसमें ज्यादा खर्च भी नहीं आएगा. वहीं छात्रों पर खर्च होने वाली राशि का सदुपयोग भी होगा. अब यदि योग्य निर्णय नहीं लिया गया तो अनेक छात्र शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित हो जाएंगे. 

    साधन-संपन्न ही कर रहे पढ़ाई : डोंगरे 

    अभिभावक सुकेसनी डोंगरे का कहना हैं कि कोरोना के नाम पर छात्रों को कब तक शिक्षा से वंचित रखा जाएगा. सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. करीब दो वर्ष हो जाएंगे, छात्र शिक्षा की मुख्य प्रवाह से दूर हो गये हैं. एक ओर जहां सभी तरह की गतिविधियां हो रही है. वहीं दूसरी ओर छात्र पढाई से दूर हो गये हैं. स्थिति यह है कि जो साधन-संपन्न हैं, वहीं ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं. जबकि आधे से ज्यादा छात्र केवल किताबों के पन्ने ही पलटा रहे हैं. सरकार को नई संकल्पना पर भी विचार करना चाहिए. कोरोना का बहाना कितने दिनों तक चलता रहेगा.