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  • जिला परिषद के सेवानिवृत्त डॉक्टरों के बेहाल

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नागपुर. सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन देने की पद्धति में सुधार लागू किया है लेकिन जिला परिषद नागपुर स्वास्थ्य विभाग के सहायक अधीक्षक की मनमानी के चलते अनेक वैद्यकीय अधिकारियों को रिटायरमेंट के 4-4 वर्ष बाद भी पेंशन व अन्य सुविधाओं व भत्तों का लाभ नहीं मिल रहा है. जीपीएफ में जमा की गई रकम तक अब तक उन्हें नहीं मिली है. सेवानिवृत्त वैद्यकीय अधिकारी संगठन की ओर से इसका खुलासा किया गया है.

हाल यह है कि 4 वर्ष से रिटायर डॉक्टरों की ग्रेच्युटी तक नहीं दी गई और नियमित पेंशन नहीं शुरू किया गया है. इन डॉक्टरों में हेमंत लंगे, शेखर तनमने, विनोद तिवारी, विजय भोजने, अशोक लोढे, वीणा फाये, राजू गोसावी, प्रदीप भंसुले, महेन्द्र जुमले का समावेश है जिन्हें कोई लाभ तक नहीं मिला है. न ही पेंशन ही शुरू की गई है. इसी तरह 10, 20, 30 वर्ष के बाद मिलने वाले आश्वासित प्रगति का लाभ भी नहीं दिया गया. डॉक्टरों के अलावा दर्जनों ऐसे हैं जिन्हें जीआईएस, एनपीए की बकाया राशि नहीं दी गई है. सारी फाइलें सहायक अधीक्ष प्रवीण ने अटका रखी है. आरोप यह भी है कि डीएचओ डॉ. दीपक सेलोकर भी दुर्लक्ष कर रहे हैं.

20,000 में कैसे चलेगा खर्च

संगठन के पदाधिकारियों ने बताया कि वर्तमान में रिटायर डॉक्टरों को 20,000 रुपये  पेंशन मंजूर की गई है लेकिन वह 10 महीने से नहीं मिली है. ऐसे में परिवार का खर्च कैसे चलेगा. बच्चों की शिक्षा, मेडिकल खर्च आदि का संकट खड़ा हो गया है. आर्थिक तंगी के चलते मानसिक तनाव बढ़ रहा है. बताया गया कि बकाया एनपीए देने के लिए 28 फरवरी 2020 को सीईओ ने लिखित आदेश दिया था लेकिन डीएचओ ने वह रकम सरकार के पास वापस भिजवा दी. इस मामले की जांच की मांग भी संगठन ने की है.

रिश्वत मांगने का आरोप

संगठन की ओर से सहायक अधीक्षक पर आरोप लगाया गया है कि जो सेवानिवृत्त  डॉक्टर पैसे देता है उसकी फाइल निकाली जाती है और जो पैसे नहीं देते उनकी फाइलों को जानबूझकर लटकाया जा रहा है. ऐसे अधिकारी के खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई करने की मांग भी की गई है.