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.’’ हमने कहा, ‘‘यहां जान लेने नहीं गुस्से से जान जलने की बात है.

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी और परीक्षा लेने वाले परीक्षक को अपनी जिम्मेदारी का पूरा अहसास रहना चाहिए. यदि ऐसा होगा तो धांधली की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाएगी. आपने वह गीत सुना होगा- जिंदगी इम्तिहान लेती है, आशिकों की जान लेती है.’’ हमने कहा, ‘‘यहां जान लेने नहीं गुस्से से जान जलने की बात है. दीया तले अंधेरा है, कुएं में भांग पड़ी है. भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है. अयोग्य, अज्ञानी और अपात्र लोग परीक्षा पास कर रहे हैं.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज कहा क्या हुआ, यह भी तो बताइए.’’ हमने कहा, ‘‘मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) जैसा एक और घोटाला सामने  आया है. भोपाल में कृषि अधिकारी पद के लिए जो परीक्षा आयोजित की गई थी, उसमें जो टॉप 10 कैंडिडेट आए, उन्हें सामान्य ज्ञान या जनरल नॉलेज की परीक्षा में एक समान नंबर मिले हैं. इतना ही नहीं उन सभी की गलतियां भी बिल्कुल एक जैसी हैं.

    इन उम्मीदवारों की जाति, कॉलेज व अकादमिक प्रदर्शन भी लगभग एक समान है. इन सारी वार्ता का रहस्योद्घाटन तब हुआ जब 862 पदों पर हुई परीक्षा की उत्तर पत्रिका के साथ ही संभावित चयनित उम्मीदवारों की सूची जारी की गई. इन बातों से अब परीक्षा की प्रामाणिकता पर संदेह होने लगा है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सवाल तो उठेगा ही क्योंकि क्या इस परीक्षा में उम्मीदवारों के बदले किसी और ने पर्चा हल किया. ऐसी नकल हुई कि सभी आंसरशीट में समान गलतियां की गईं. परीक्षा के नाम पर धांधली की गई. हो सकता है कि पैसा देकर किसी किराए के टट्टू से पेपर लिखलाए गए हों. परीक्षा के टॉपर ने धन देकर पद पाने का सौदा किया होगा. हमने कहा, यदि अयोग्य लोगों की इस तरह नियुक्ति करनी है तो चयन परीक्षा का आडम्बर ही क्यों करना चाहिए. लगता है पदों की नीलामी होती है. पैसा दो और सरकारी नौकरी लो जिसमें न काम करना है, न जवाबदारी निभानी है. लगता है कि शिवराज सिंह सरकार ने व्यापमं घोटाले से कोई सबक नहीं सीखा, परीक्षा में फिर धांधली होने लगी है.’’