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नई दिल्ली. जहां बीते कुछ महीनो से मणिपुर में तनाव (Manipur Tension) बढ़ता ही जा रहा है। वहीं इसी क्रम में मणिपुर पुलिस ने बीते शनिवार 16 सितंबर की रात को सेना की वर्दी पहनकर पुलिस शस्त्रागार से हथियार लूटने के आरोप में पांच मैतेई युवाओं को गिरफ्तार कर लिया है। इस दिन यानी 16 सितंबर को  मणिपुर में ही सेना के एक जवान की सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बाद में उसका शव अगले दिन ईस्ट इंफाल के खुनिंगथेक गांव में मिला था। हालांकि यह इस राज्य में हो रही अनेकों हिंसा की घटनाओं में से कुछ एक हैं।

मणिपुर और हिंसा का दौर 
दरअसल मणिपुर में इस साल मई से दो समुदाय बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक कुकी के बीच हिंसक झड़प देखने को मिल रही है। याक्हन के मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब (ST) का दर्जा दिया जाए। सारी परेशानी इसी केक मांग से शुरू हुई है। तनाव तब और भी बढ़ गया जब कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय की आधिकारिक जनजातीय दर्जा दिए जाने की मांग का विरोध करना शुरू कर दिया। 

आज ही के दिन हुआ था भारत में विलय 
लेकिन इन सबके बीच आपको यह भी बता दें कि, हिंसाग्रस्त मणिपुर आज ही के दिन यानी 21 सितंबर को भारत का हिस्सा बना था। जी हां, ये तारीख़ थी 21 सितम्बर 1949 की। जब महाराजा बुधाचंद्र ने विलय के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये और उसी साल 15 अक्टूबर को मणिपुर भारत का अभिन्न अंग बन गया। 1956 से लेकर 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित राज्य रहा और 21 जनवरी 1972 को इसे अलग राज्य का दर्जा भी मिल गया। 

विलय का दिलचस्प किस्सा 
हालांकि मणिपुर के भारत के साथ विलय पर असहमति जरुर जताई गई थी। इस बाबत मणिपुर के राजा बोधसिंह ने लिखा कि, भारत के बाकी राज्यों के साथ तालमेल नहीं बैठा पाएगा। ऐसे में अच्छा होगा कि मणिपुर और भारत दोनों एक-दूसरे के हितों की सुरक्षा करें। इस चिट्ठी के बाद उस वक्त के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का ध्यान मणिपुर के विलय की तरफ गया। इसके ठीक 6 महीने बाद 21 सितंबर 1949 को मणिपुर के राजा बोधसिंह को भारी मन से भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने ही पड़े।

जब रो दिए मणिपुर के राजा
दरअसल गृहमंत्री पटेल ने अपने सख्त लहजे में साफ इशारा कर दिया था कि मणिपुर को सेना के जरिए जल्द से जल्द भारत में मिलाना चाहिए। जल्द ही मणिपुर के भारत में विलय की प्रक्रिया शुरू हो गई। यह बात जब मणिपुर के राजा बोधचंद्र को पता चला तो वे उदास हो गए और रोने लगे। इसके बाद राजा ने अपने मंत्रियों से सलाह लिए बिना किसी भी विलय पत्र पर दस्तखत करने से मना कर दिया। फिर क्या था तुरंत उनके घर को चारों ओर से घेरकर भारतीय सेना ने उन्हें नजरबंद कर दिया। साथ ही उनकी टेलीफोन और टेलीग्राफ लाइन काट दी। बाद में वो दस्तखत के लिए राजी हो गए। आखिरकार 21 सितंबर 1949 को बोधचंद्र सिंह ने भारत के साथ विलय समझौते पर हस्ताक्षर कर ही दिए।

दिलचस्प है मणिपुर के नामकरण का किस्सा 
दरअसल मणिपुर का नाम ‘ग़रीब नवाज़’ महाराजा ने दिया है। इस बाबत अपनी किताब,‘मणिपुर का इतिहास’में जाने माने इतिहासकार ज्योतिर्मय राय ने लिखा कि मैतेई महाराजा ‘पामहेयीबा’ को ही ‘ग़रीब नवाज’ के नाम से भी जाना जाता था। जिन्होंने इस इलाके में हिन्दू धर्म की स्थापना की थी। वे मणिपुर के पहले हिन्दू महाराजा भी थे जिनका शासनकाल 1709 से 1751 तक रहा। बाद में उन्होंने मैतेई धर्म त्याग कर हिन्दू धर्म अपना लिया था और अपने साम्राज्य में इसे लागू कर दिया था। मामले पर इतिहासकारों का यह भी दावा है कि, उन्होंने ही सभी मैतेई समुदाय के लोगों को बाद में हिन्दू धर्म शामिल किया था।